कविता

मेरी रचना

दिलकी गहराई से निकले
मेरे अनगढ़ से अल्फाज
धडकनों की थाप पे बजते
बेतरतीब से साज
दोनों मिलकर कुछ यूँ
जुगलबंदी कर जाते हैं
जाने अनजाने वह
तुम्हें जन्म दे जाते हैं
नहीं जानता मैं
क्या नाम है तुम्हारा
कभी गजल किसी ने
किसी ने कविता पुकारा
दोहा हो ,छंद हो
या हो चौपाई
चाहे तुम गजल हो
या हो रुबाई
हर रूप में तुम
हो मुझको लुभाती
सोए हुए दिल के
अरमां जगाती
दिल से निकल के
फिर दिल में समाती
प्यारी सी सरगम
लबों पे सजाती
तुम ही हो खुशियाँ ,
तुम ही हो चैना
तुम ही हो पूजा
तुम ही हो अर्चना
पहचानूँ तुमको
पर नाम नहीं जानूँ
जानूँ बस इतना ही ,
कि तुम हो मेरी रचना

राजकुमार कांदु
2/3- 11- 2019

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।