कविता

पतझड़ छिपाये दामन में

वफा-ए-इश्क के चर्चे गली में है,
मशहूर हुआ है इश्क चौबारो में।
जो अनमोल रहा परदे में हमेशा
उसका मोल लगाया बाजारो में।
बेगुनाह,बेकस,नादान,मासूम दिल,
शामिल हो गया है अब गुनहगारों में।
जिसे पतझड़ छिपाये फिरी दामन में,
सरेआम हो गया वो आके बहारों में।
दिल के दरवाजे बंद-बंद बोलचाल,
दे रहे धार लोग शब्दों के औजारों में।
जो कभी दिल की पहचान होते थे,
गिनती होती है उनकी अब हजारों मे।
लोग कहना सुनते नहीं अब जमाने में,
और कान होने लगें हैं अब दीवारों मे।
जो सबनम की बूंद के मानिंद होते थे,
आजकल दिखते हैं वो खूब सरारों में।
अपनेपन की दुनिया हो गई बेगानी,
अब धूम रही ना कोई त्योहारों में।
— आरती त्रिपाठी

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश