कुण्डली/छंद

मधुशाला

केवल श्रम की चाबी से ही, खुलता किस्मत का ताला
कर्तव्यों से ही मिलती है, अधिकारों वाली हाला।
जो साहस के साथ मथेगा, कठिनाई के सागर को
उसके जीवन में छलकेगी, सुख सपनों की मधुशाला।।

चलने का साहस करते जो, पावों में सहकर छाला
मंजिल पर जाकर भरते हैं, कामयाबियों की हाला।
जो सच्चाई से करते हैं, कर्तव्यों का निर्वाहन
उनका जीवन धन्य बनाती, संतोषों की मधुशाला।।

जिसने जीवन भर फेरी है, प्रेम समर्पण की माला
जिसने बाँटा है दुनिया को, भर भर चाहत का प्याला।
उनकी कर्मपरायणता से, हो प्रसन्न परमेश्वर ख़ुद
उनके जीवन में छलकाते, आनंदों की मधुशाला।।

कर्मों के अनुसार सभी को, देता है देने वाला
जिसे चाहिये सत्कर्मों से, भरले चाहत की हाला।
ख़ुद से पहले जो औरों की, प्यास बुझाता है बंसल
उसको जीवन भर मिलती है, आशीषों की मधुशाला।।

— सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.