कविता

जिंदगी और मौत

ये जिंदगी चंद लम्हो की है यारो,
आएगी मौत तो हाथ रहेगी खाली
फिर काहे को हाय तौबा है यारो,
काफी है जीने के लिए दाल रोटी की थाली।
जिंदगी एक गुलामी है उम्र भर के लिए,
मौत आजादी है हमेशा के लिए
तू डर ना मौत से ऐ मेरी जिंदगी,
मौत को ही बना ले तू अपनी बंदगी।
मौत जिंदगी से बेहतर लगती है,
किसी की यादों की चिंगारी नहीं सुलगती है
जिंदगी तो बस एक छलावा है,
मरने वाले को तो कभी नहीं रूलाया है।
जिंदगी में तो मौत का डर सताया है,
मौत वफा है उसने वफा निभाया है।
गजब है इस जिंदगी की दस्तुर,
जिंदा हूँ तो खुद पे रहता गुरूर
जब टूट जाती है सांसो की साख,
तो अपने ही जलाकर कर देते हैं खाक।।
– मृदुल