पर्यावरण

पर्यावरण संरक्षण में अपना अमूल्य योगदान करतीं हमारी धरती के ह्वेलें

वाशिंगटन स्थित मैक्रो इकोनॉमी के एक विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री ने अन्य कई ह्वेल विशेषज्ञों के साथ मिलकर ह्वेलों के बारे में एक बहुत ही आश्चर्यजनक और चौंकाने वाली खोज किया है। उनके शोधपत्र के अनुसार हमारी संपूर्ण पृथ्वी के पर्यावरण संरक्षण करने और ग्लोबल वार्मिंग न होने देने के लिए यह अतिविशालकाय जीव बहुत ही योगदान देने वाला जीव है,क्योंकि ह्वेलों में समुद्र के पानी से कार्बनडाईऑक्साइड सोखकर अपने शरीर में संचय करने की अद्भुत क्षमता होती है। उनके शोधपत्र के अनुसार एक ग्रेट ह्वेल के शरीर में 33 टन तक कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित कर उसे संचित रखने की अद्भुत क्षमता होती है। ह्वेलों में कार्बन डाई ऑक्साइड संग्रहित करने की मात्रा की विशालता का अंंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि एक सामान्य कार एक साल में 4.6 टन तक का कार्बन डाई ऑक्साइड तक उत्ससर्जित करने के मुकाबले लगभग 8 गुना तक एक ह्वेल कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा को अवशोषित करके अपने शरीर में संग्रहित किए रहती है।
इसीलिए ह्वेलों के मरने के बाद उनके विशाल फेफड़ों में भरा कार्बन डाई ऑक्साइड गर्म होकर उनके मृत शरीर को समुद्र की सतह पर ले आता है। इसे ‘ह्वेल फॉल ‘ के नाम से पुकारा जाता है,इस तरह की ह्वेल फॉल की वैज्ञानिक घटना वैज्ञानिकों द्वारा केवल 75 बार ही देखा गया है। जीवित अवस्था में ह्वेलें इस कार्बन डाई ऑक्साइड के विशाल मात्रा को समुद्र की अतल गहराइयों में ले जाती रहतीं हैं।
गल्फ ऑफ माइने रिसर्च इंस्टीट्यूट के पारिस्थितिकी वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया की सारी ह्वेलें एंटार्कटिका परिक्षेत्र में 70 हजार टन तक कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा को अपने शरीर के अन्दर अवशोषित कर लेतीं हैं। इन ह्वेलों द्वारा अवशोषित कार्बन डाई ऑक्साइड की इस मात्रा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूरे रॉकी पर्वतमाला के बराबर जंगलों द्वारा कुल अवशोषित कार्बनडाई ऑक्साइड की मात्रा के लगभग बराबर यह मात्रा होती है।
इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ह्वेलें इस पृथ्वी के समस्त जैवमण्डल के लिए पर्यावरण संरक्षण के लिए तथा ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के लिए कितना बड़ा योगदान कर रहीं हैं,परन्तु मानव इन ह्वेलों को अपने व्यापारिक स्वार्थ और हवश के चलते इस धरती पर इनके अस्तित्व को ही मिटाने पर तुला हुआ है। एक वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार सन् 1900 से सन् 1999 तक उन्तीस लाख ह्वेलों (2900000) को बेरहमी और क्रूरतापूर्वक कत्ल कर उनके मांस को जापान और नीदरलैंड जैसे देश खा जाते हैं। इससे दुनियाभर के समुद्रों में अब सिर्फ 2500 से 10000 तक ही ह्वेलें बची हुई हैं और चोरी-छिपे उनका भी शिकार करके उनके अस्तित्व को भी मिटाया जा रहा है। ये अब बन्द होना ही चाहिए, क्योंकि इस पृथ्वी पर अब तक के सबसे बड़े स्तनधारी जीव इस ह्वेल के अस्तित्व को बचाना हमारा नैतिक कर्तव्य भी है।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

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