गीत/नवगीत

आंखों का तारा

तुम्हीं से बहती है दिल में खुशहाली की एक धारा

तुमसे ही तो है रौशन गली आंगन ये चौबारा

तुम्ही हो आस जीने की तुम्ही हो सांस की डोरी

तुम दोनों ही तो घर में हो सबकी आंखों का तारा

 

तुम्हारी मुस्कुराहट ने सदा मुस्कान दी हमको

तुम्हारी तोतली बोलों ने एक नई जान दी हमको

तुम्हारे देख के मुखडे़ हमारे मुखडे़ खिलते हैं

इस आंगन में खुशहाली तुम्हारे दम से मिलते हैं

तुम्हारी रौशनी से हुआ है दूर अंधियारा

तुम दोनों ही तो घर में हो सबकी आंखों का तारा

 

यही विनती है ईश्वर से सदा खिलती रहो दोनों

उमंगों और खुशियों से गले मिलती रहो दोनों

सफलता की चढा़ई पर सदा चढ़ती रहो दोनों

अपने कर्मों से गौरव सदा गढ़ती रहो दोनों

जितनी प्यारी हो उतना तुम्हारा नाम हो प्यारा

तुम दोनों ही तो घर में हो सबकी आंखों का तारा

तुम दोनों ही तो घर में हो सबकी आंखों का तारा

— विक्रम कुमार

विक्रम कुमार

बी. कॉम. ग्राम - मनोरा पोस्ट-बीबीपुर जिला- वैशाली बिहार-844111 मोबाईल नंबर-9709340990, 6200597103