सामाजिक

अखबार पढ़ने की कला

किस भी कार्य को सम्पादित करने में जो तथ्य सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है,वह है-रुचि। यदि आपकी रुचि संगीत सुनने में है तो आप स्वयं ही अपने व्यस्त दिनचर्या में भी उसके लिए समय निकाल ही लेंगे। बस में, ट्रेन में, मेट्रो में या फिर रोड पर चलते हुए भी आप हेडफोन लगाकर ऑफिस पहुँचने के क्रम में और ऑफिस के बाद घर पहुँचने के दौरान संगीत का लुत्फ़ उठा ही लेंगे। कतिपय सामान अवयव काम आती है अखबारों को पढ़ने के प्रति लगाव पैदा करने में। यदि एक बार रुचि पैदा हो गई तो आप एक दिन में एक ही नहीं कई अखबार पढ़ जाएँगे और स्वयं को ज्ञान से परिपूर्ण महसूस करेंगे।

जो व्यक्ति अखबार पढ़ने की शुरुआत कर रहा है उसे अपनी रूचियों का पता होना आवश्यक है। यदि किसी को खेल में रुचि है तो वह खेल के खबर को ही रोज़ पढ़ना शुरू करे। यदि किसी को फिल्मों में रुचि है तो फ़िल्मी खबर और किसी को राजनीति में रुचि है तो राजनीति की तमाम ख़बरों को पढ़कर अखबार पढ़ने के आदत को विकसित कर सकता है। धीरे-धीरे अन्य ख़बरों की तरफ भी ध्यान खुद–ब -खुद जाने लगता है। जैसे कि यदि कोई व्यक्ति,खेल का प्रेमी है तो शुरू में वह शुद्ध खेल के ख़बरों तक ही सीमित रहता है। बाद में वह अपने प्रिय खिलाडी के जीवन से जुडी बातें जैसे कि उसकी शादी किसी अभिनेत्री से हुई है तो वह फ़िल्मी ख़बरों की तरफ भी बढ़ना शुरू करता है। यदि उसके प्रिय खिलाड़ी ने कोई टीम खरीदी है तो वह व्यापार की ख़बरों को भी तवज्जो देना शुरू करता है। यदि खिलाड़ी किसी राजनितिक पार्टी से जुड़ जाता है तो उसका ध्यान राजनीतिक हलचलों की तरफ भी जाने लगता है ।और यदि खिलाड़ी किसी चैरिटेबल संस्था या शैक्षिक संस्था से जुड़ा हो तो पाठक साहित्यिक और विविध ख़बरों से भी रू-ब-रू होना शुरू करता है। इस तरह क्रमानुसार एक नवोदित पाठक सम्पूर्ण अखबार पढ़ने लगता है।

मेरी प्रारंभिक शिक्षा (वर्ग 6 से 12 तक ) तिलैया डैम के ह्रदय में बसे स्कूल -सैनिक स्कूल तिलैया ,कोडरमा डैम से पूर्ण हुई। मेरा नामांकन इस प्रतिष्ठित विद्यालय में 16 अगस्त 1997 में हुआ और यहीं से अखबार को पढ़ने की सही शुरुआत हुई। हालाँकि पहले अखबारों में फ़िल्मी हीरो-हीरोईन की तस्वीरें दिखने और उनकी कटिंग करना ही हमारे लिए अखबार पढ़ना होता था। लेकिन सैनिक स्कूल में हर हॉस्टल में सिर्फ अंग्रेजी अखबार आते थे ताकि हमारी अंग्रेज़ी भाषा ठीक हो सके। इसके लिए एक और क़ानून था -इंग्लिश स्पीकिंग कार्ड। रात को सोने से पहले जो छात्र हिंदी बोलता हुआ पकड़ा जाता था उसे यथोचित दण्ड भुगतना पड़ता था। और सैनिक स्कूल का यथोचित दंड इतना ज्यादा होता था की हर छात्र उससे बचने की कोशिश में इंग्लिश बोलने की भरपूर कोशिश करता था। हालाँकि इसका तोड़ भी मिल गया था कि 10 छात्रों के समूह में हर छात्र नियत दिन पर हिंदी बोल दे ताकि एक ही छात्र दंड का भागी ना बनता रहे। पर इसके बावजूद भी, यह तरीका इंग्लिश सिखाने का एक अच्छा तरीका कहा जा सकता था। मेरे छात्रावास पाटलिपुत्र में अंग्रेज़ी अखबार “द टाइम्स ऑफ़ इंडिया ” आता था। सीनियर्स के पढ़ने के बाद सबसे बाद में हमारे पास यह अखबार आता था। हमारे पास पहुँचते-पहुँचते सम्पादकीय ,देश-विदेश की ख़बरों वाला पन्ना लाल-पीले इंक से भरा होता था। चूँकि सीनियर्स अखबारों से खबरें निकाल कर उसे डिबेट और डिस्कशन में इस्तेमाल करते थे इसलिए अखबारें रंगीन हो जाया करती थीं। जो पन्ना सबसे साफ़ और पढ़ने लायक बचता था वो था खेल और फ़िल्मी ख़बरों का और मुझे इन दोनों में ही रुचि थी। मैं रात के लगभग 9 बजे अपने उन ख़बरों को पढ़ने के क्रम में कठिन 5 शब्दों के अर्थ भी अलग से लिखता जाता और उसे इस्तेमाल करने की भी कोशिश करता। उस समय फ़िल्मी ख़बरों को पढ़ते-पढ़ते मैंने scintillating,ravishing,titillating ,खेल के पृष्ठों से catch-22 position,menacing,death-defying जैसे शब्दों को सीखा और आज तक यह मेरे जहन में ज्यों के त्यों बसी हुई हैं। इसी तरह से नए शब्द सीखते-सीखते आलम यह हुआ कि मैंने जब एक सीनियर की डायरी लिखी तो अनेक शब्दों के अर्थ जानने के लिए उन्हें मुझे बुलाना पड़ा।हालाँकि यह उनकी कहीं-न-कहीं हार थी या नहीं पता नहीं पर मेरी जीत जरूर थी।

2011 में मैंने दिल्ली में वाजीराम एन्ड रवि में सिविल सेविसेस की कोचिंग की। वहाँ शिक्षकों ने अखबार को वैज्ञानिक ढंग से पढ़ने की बात बताई। अभी तक मैं अखबार को अपने दिनचर्या में शामिल कर चुका था लेकिन अब अखबार को बाइबिल की तरह पढ़ने की बारी थी। इस तरह की परीक्षाओं में कुछ भी पूछा जा सकता था। अतः हरेक पेज जो ध्यान से पढ़ते हुए,अंडरलाइन करते हुए उसकी कटिंग करके स्क्रैप बुक भी बनाना पड़ता है। हालाँकि 5-6 स्क्रैप बुक मैंने वर्ग 10 तक खिलाड़ियों के फोटो के तैयार कर लिए थे लेकिन वह सिर्फ मेरे मनोरंजन के लिए था लेकिन अब बात एग्जाम क्लियर करने की थी। अखबार को पढ़ने का वक़्त तय था-गाड़ी में आते और जाते हुए। कोचिंग के लिए आते हुए सम्पादकीय ,देश-विदेश की खबरें और वापस जाते हुए बाकी ख़बरों को पढ़ लेना होता था। और यकीन मानिए यह सिलसिला 8 महीनों तक इस खूबसूरती से चला कि किसी भी दिन का अखबार पढ़े बिना छूटा नहीं और परीक्षा से पहले बेहतरीन स्क्रैप बुक भी तैयार हो गई। इस स्क्रैप बुक ने 2016 के सिविल सर्विसेज में कमाल ही कर दिया। उस साल प्रारंभिक परीक्षा में लगभग 60 प्रतिशत सवाल करेन्ट अफेयर्स से आए थे और वो साड़ी खबरें मैंने स्क्रैप बुक में कइओं बार पढ़ रखे थे। परिणाम यह हुआ कि मुझे उस साल प्रारंभिक परीक्षा के सबसे बेहतरीन अंक प्राप्त हुए और मैं मुख्य परीक्षा के लिए क्वालीफाई हो गया था। वैज्ञानिक ढंग से अखबार पढ़ना कब मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन गया और मुझे इतना फायदा पहुँचा गया,मुझे पता भी नहीं चला।

हर उम्र में अखबार पढ़ने का कारण अलग होता है। बचपन में मनोरंजन के लिए,युवावस्था में परीक्षा निकालने के लिए और वृद्धावस्था में समय गुजारने के लिए। हालाँकि कारण जो भी हो, अखबारों को तरीके से पढ़ने से यह हर उम्र के व्यक्ति को लाभान्वित करता है।

— सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : salilmumtaz@gmail.com