कविता

नारी की कहानी

किस बात की पीड़ा है,
किस बात का डर है,
क्यों घबराती  हो छींटाकशी से,
ये तुम्हे सौगाते मिली है।
चरित्र और मर्यादा का ढोंग,
हमें ही करना है।
सारी  रीति रिवाज़ हमें ही निभाने है
फिर भी हमें ही बदनाम किया जाता है
पुरुष कुछ भी करे
वो सब ठीक है
नारी पर हो रहे अत्याचारों को
नारी की गलती बतया जा रहा है
इतिहास गवाह है
नारी हर जगह ठगी गयी है
चाहे वो जुआ हो या हो बाजार
उसे क्यों सामान समझा जाता है
ऐसे लगता है नारी केवल भोग की वस्तु है
फिर क्यों देवी की पूजा करते है
जो नियम बनाये वो एकतरफा हो गए
नारी में भी दर्द होता है
वो भी एक इंसान है।।
— गरिमा

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384