कविता

कविता – वो लेखिका नहीं थी

वो लेखिका नहीं थी…
वो कवियत्री भी नहीं थी
न जाने कब अपने भावो को सरल सहज आकार देने लगी कागजों पर ।

वो नहीं जानती थी कि क्या लिखती है
पर जो जीती थी
लिखती थी
अपने लिए
न कोई भय न संकोच
न मात्रा देखती थी
न व्याकरण समझती थी
गिनती तो दुर की बात थी।
फिर कोशिश करने लगी भावो को मात्राओं मे बाधने की, संवारने की ।
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और भावो ने उसका साथ छोड़ दिया।
अब पढती है, समझती है
पर खूद को अभिव्यक्त नही कर पाती
भीतर उमड़ता तो हैं
पर कथन सशक्त नहीं कर पाती।

इतनी सी कहानी हैं एक अंजाने में बनी कवियत्री के गुमनामी मे खोने की ।

— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)