धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

अध्यात्म प्रबंधन (Spiritual Management)

जीवन की भाग दौड़, अस्त-व्यस्तता, तनाव, बीमारी, दुःख-परेशानी, आंधी-तूफान, समस्या-संकट के समय अध्यात्म शक्ति, साहस, ऊर्जा देता है, गलत रास्ते पर चलने से रोकता है, अंधेरे में रोशनी करता है, मार्गदर्शन देता है, उत्साह वर्धन करता है, टूटने बिखरने की स्थिति से बचाता है, अवसाद डिप्रेशन से उबारता है, रामबाण अचूक औषधि का कार्य करता है।
आइए, अध्यात्म-प्रबंधन हेतु कुछ बिन्दुओं पर विचार करें।
प्रतिदिन 10 मिनिट कोई भी अध्यात्मिक पुस्तक अवश्य पढ़िए। परिवार की परम्परा, संस्कार, धर्म के अनुसार गीता, रामायण, कुरान, बाइबिल, गुरूग्रंथ साहब इत्यादि कुछ भी ईश्वर को समर्पित कर पढ़ना सबसे प्रभावशाली दवा है। अनेकों परिवारों में प्रातः स्नान के पश्चात् पूजा करके ही नाश्ता किया जाता है, सायंकाल भी परिवार के सदस्य मिलकर आरती करते हैं, याद करें मां तुलसी के पौधे को जल चढ़ाती, दीपक जलाती, चुन्नी ओढ़ाती। याद करें, पिता को सूर्य को अध्र्य देते हुए, भाभी को तुलसी की 108 परिक्रमा करते हुए, मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ, शनिवार को सुन्दरकान्ड का पाठ, सोमवार को शिवजी को दूध चढ़ाना, मन्दिर के द्वार खुले हों, फिर भी घंटा बजाना, व्रत, उपवास, त्यौहार, पूर्णिमा को सत्य नारायण की कथा, पंचामृत, आरती बहुत परम्पराऐं छूट गई हैं। कुछ आज भी निभाई जा रही हैं। वत्र्तमान पीढ़ी इन्हें आडम्बर, ढ़ोंग, पाखण्ड नाम देती है, पर जो व्यक्ति इन्हें अभी भी निभा रहे हैं, उनके चेहरे पर आत्म-विश्वास, मुखमंडल पर तेज, संकट में संतुलन, ईश्वर पर भरोसा, दवा से अधिक दुआ पर विश्वास, स्थिति को स्वीकारने की हिम्मत, कर्म करते रहने का संकल्प इत्यादि इन्हीं परम्पराओं के कारण ही होता है। नकारात्मक सुझाव उन्हें प्रभावित नहीं करते, बस वे परम्पराऐं निभाते जा रहे हैं, शक्ति, उत्साह, धैर्य के लिए एक नियम अनुशासन के तहत, बूढ़ी दादी नानी ‘योगा‘ नहीं जानती पर उनकी परम्पराऐं उन्हें इतनी अधिक ऊर्जावान रखती हैं, जितनी हमें योग, शिविर से नहीं मिल पा रही, इसलिए परिवार की परम्पराओं के वैज्ञानिक पहलू पर तर्क नहीं करते हुए श्रद्धा, विश्वास, भरोसा, आशीर्वाद, स्नेह, प्यार, प्रेम को सुखद वातावरण बनाए रखने हेतु, जितना भी संभव हो इनका पालन करने का प्रयास कीजिए।
देना सीखिए, ज्ञान बांटिए, रक्त दान करिए, गरीब छात्र-छात्रा की फीस स्टेशनरी हेतु दीजिए, स्कूलों में सुविधाऐं हेतु पंखे, पीने के पानी की सुविधा इत्यादि जितना भी आर्थिक दृष्टि से सम्भव हो, करिए, स्कूल में, विशेषकर गांव के सरकारी स्कूल में, एक अल्प सहायता भी प्रभावशाली व सार्थक होगी। संकल्प करिए कि आपे जन्म दिन या नव वर्ष के दिन या किसी भी दिन वर्ष में एक बार एक सरकारी स्कूल जाकर निर्धन छात्र-छात्राओं हेतु पत्रं पुष्पं सहायता करेंगे।
प्रति वर्ष एक पौधा लगाइए, पर्यावरण की रक्षा कीजिए। चिड़ियों को रोटी खिलाइए, कबूतरों को अनाज खिलाइए, 10 से 15 मिनिट मौन रहिए, पास के अस्पताल में इनडोर वार्ड में प्रति सप्ताह जाकर मरीजों को फल-बिस्कुट देकर आइए, प्रति सप्ताह वृद्धाश्रम जाइए, बुजुर्गों के लिए फल लेकर जाइए। घर में काम करने वाली बाई के बच्चे को रविवार के दिन घर पर बुलाकर अंग्रेजी या गणित पढ़ाइए। अपने जन्म दिन पर काम करने वाली बाई को 51-101 रू श्रद्धानुसार दीजिए, उसे भी शाम केा केक खाने के लिए बुलाइए। बाई अपने बच्चे के जन्म दिन पर आप को घर बुला रही है, तो सारे आवश्यक कार्य छोड़कर भी उसके घर जाइए। जनरल मेनेजर के बच्चों के बर्थ डे पर तो हम हाथ जोडे़ हुए 1000-500 रू. की मंहगी गिफ्ट लेकर जाते हैं। बाई के बच्चे केा 100 रू. भी देगें, तो आंखें भर आऐंगी उसकी भी व आपकी भी।
अध्यात्म मात्र पूजा-प्रार्थना-इबादत सिजदा की सीमा तक ही नहीं है। हर एक अच्छा काम अध्यात्म है। आध्यात्मिक शक्ति एक अनमोल पंूजी है। अवसर हैं, बस मन चाहिए करने को 10000 रू. मासिक वेतन में से 100 रू. प्रतिमाह भी गरीबों की सहायता हेतु देने से हमारे पास फिर भी 9900 रू. बचे रहते है, 100 रू. गरीब पर खर्च कर हम उस पर एहसास नहीं कर रहें, परन्तु इसमें हमारा ही स्वार्थ है। इससे हमारा ही भला होगा। गीत गाइए, मीडिया को बताइए ताकि समाज के अन्य व्यक्ति भी इन नेक कार्यों हेतु आगे आए। गुप्त दान के चक्कर में मत रहिए। समाज को अपने अच्छे कर्म बतलाइए, पता नहीं किस को आप से प्रेरणा मिल जाए।
अच्छे अध्यात्म-प्रबंधन हेतु इनके अतिरिक्त भी बहुत कुछ किया जा सकता है, करिए, अच्छा लगेगा स्वयं को ही। इति।

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी