गीतिका/ग़ज़ल

व्यंग्य ग़ज़ल-आज वो बदनाम कहता है

निकलता जिनसे कुछ मतलब उन्हें हुक्काम कहता है.
निकल जाता है जब मतलब वो झंडू बाम कहता है.

तरीका उसका अपना है किसी की चापलूसी का,
पड़े जब काम कल्लू से तो कालाजाम कहता है.

टहलने भी नहीं जाता न करता दंड-बैठक वो,
सुबह बस फूँ-फाँ कर लेता उसे व्यायाम कहता है.

पिलाकर जाम मुझको काम करवाता रहा अपना,
लगी पीने की लत मुझको, उमर ख़य्याम कहता है.

ज़रूरत थी उसे जब तक मुझे कहता रहा “बापू”,
ज़रूरत हो गयी पूरी तो “आशाराम” कहता है.

हमारे नाम से जब नाम उसका हो गया काफी,
हमारे नाम को ही आज वो बदनाम कहता है.

डॉ. कमलेश द्विवेदी
कानपुर
मो.9140282859