मुक्तक/दोहा

मुक्तक

चल रहा ये पतझरों का दौर जाएगा ज़रूर
ज़िन्दग़ानी का गुलिस्तां मुस्कुराएगा ज़रूर
उसकी रहमत और ख़ुद के कर्म पर विश्वास रख
मुश्किलों के बाद अच्छा वक्त आएगा ज़रूर

शोर कितना साथ लेकर डोलती है ख़ामशी
मौन से भी भेद मन के ख़ोलती है ख़ामशी
ख़ामशी को कान से सुनना नही मुमकिन मगर
दिल सुने तो फिर बहुत कुछ बोलती है ख़ामश

धड़कनों से मर्ज़ समझे जो दिले बीमार का
एक आँसू पर लुटा दे जो ख़ज़ाना प्यार का
यार वो क्या यार जिससे हाले दिल कहना पड़े
यार वो जो हाल चहरे से समझ ले यार का

प्रेम मीरा की तपस्या है कठिन उपवास है
प्रेम राधा का समर्पण कृष्ण का विश्वास है
प्रेम में होती कहाँ है देह की अनिवार्यता
प्रेम रूहों के मिलन का श्रेष्ठतम अहसास है

— सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.