गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

परचम हमारे देश का ऐसा लहर गया |
भारत हमारा विश्व के दिल में उतर गया |

सीने पे खा जो गोलियाँ जय बोलते रहे-
उनके लहू से देश का चेहरा निखर गया |

जाँबाज सरफरोश निडर देश के वो लाल-
करतब को जिनके देख के दुश्मन सिहर गया |

फांसी का फंदा चूम के जो चढ़ गये सलीब –
तप त्याग बल से उनकी भारत सँवर गया |

कह के गए जाने वतन होना न तू उदास-
मैं जर्रा हूँ पवन ,सुगन्ध बन बिखर गया |

गणतंत्र अमर है अमर है इसकी आन बान-
ज्यों सप्त रंग इंद्रधनुष बन ठहर गया |

मन ‘मृदुल’ कह रहा है मिटेंगे सभी विषाद-
अब ज्ञान की मशाल ले जन- मन फहर गया |

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016