मुक्तक/दोहा

दो मुक्तक

नूतन वर्ष में अभिनव प्रयोग करके तो देखें,
नई विधा नई दिशा की ओर भी चलकर तो देखें,
जीवन बन जाएगा मंगलमय मधुमास,
नई युक्तियों को जरा अपनाकर तो देखें!

रंग बहुत-से देखे, बसंती मन भाया,
रंगों का सरताज, बसंती मन भाया,
वीर शहीदों ने भी पहना, चटक बसंती चोला,
देश-प्रेम का रंग, बसंती मन भाया.
-लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “दो मुक्तक

  • लीला तिवानी

    सब नसीब का खेल है, चढ़ता पंगु पहाड़।
    पत्थर जैसा फल लिए, खड़े डगर पर ताड़।
    न छाया नहीं रस मधुर, न लकड़ी नहीं दाम-
    नशा लिए बहका रहा, पीते हैं सब माड़।।

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