कहानी

काश! पहले समझी होती नारी शक्ति 

निखिल बबिता और उनका बेटा अक्षय (12 वर्षीय) छोटा-सा खुशहाल परिवार था। निखिल की छोटी सी दुकान थी। निखिल की आमदनी ठीक-ठाक थी। पर आजकल की महंगाई । निखिल के सिर कर्जा बढ़ता जा रहा था । बबिता कर्जे से अंजान थी । करदाता के  निखिल के पास बार बार फोन और मेसेज आते थे।  कर्जा न चुकाने के कारण करदाता निखिल को बार-बार धमकी दे रहा था । निखिल परिस्थितियों से घबरा गया और डरकर बिना कुछ बताए घर-परिवार छोड़कर कहीं दूर चला गया ।
                    बबिता बहुत परेशान थी। उसे नही मालूम था कि निखिल घर छोड़कर क्यों गया । बबिता निखिल के कर्जे से अंजान थी। बबिता ने निखिल को ढ़ूँढ़ने की बहुत कोशिश की । अखबार में इश्तहार, दोस्तों रिश्तेदारों को फोन, पर निखिल का कुछ पता न चला । बबिता खुद की किस्मत को दोषी ठहरा रही थी । वह अकेली हो गई थी । बबिता स्वाभिमानी थी इसलिए उसने किसी भी रिश्तेदारों से एक रूपए की भी मदद न ली। बबिता को बस अब एक मात्र सहारा निखिल की दुकान थीं ।
                 निखिल के लापता होने की खबर शहर मे आग की तरह फैल गई । दूसरे दिन ही कर्जदाताओं की लम्बी कतार बबिता के घर पर लगी हुई थी। सब अपना हिसाब किताब लेकर बबिता के घर पहुँचे । तब बबिता को निखिल के कर्जे के बारे मे मालूम चला । उसने दुकान का सारा सामान बेचकर निखिल का कर्जा चुकाया। बबिता के सिर पर तो दुख का पहाड़ टूट पड़ा था । अब वह अकेली लाचार कैसे जीवन यापन करे। और उसके ऊपर तों उसके बेटे की जिम्मेदारी भी थीं ।
                       बबिता पढ़ी लिखी थीं । उसने हिम्मत न हारी। उसने घर पर ही बच्चों को ट्यूशन देना शुरू की। सिर्फ ट्यूशन से ही गुजारा न हो पा रहा था। इसलिए उसने साथ मे टिफ़िन का काम भी शुरु किया। अक्षय बहुत समझदार था। उसने हर कदम पर अपनी माँ बबिता का साथ दिया । मां बबिता की ऐसी दशा देखकर बेटे अक्षय ने अपने सारे ख्वाब दिल की कोठरी मे कैद कर दिए थे। अक्षय  ने कभी भी अपनी मां के सामने कोई भी इच्छा जाहिर ना की ।  बबिता ने अक्षय की परवरिश काफी अच्छे ढ़ंग से की और अच्छे संस्कार भी दिए ।
वक्त बीतता गया और वक्त के साथ-साथ बबिता के बुरे वक्त ने अपना रस्ता बदल लिया । बबिता ने जीवन बिताने के लिए कठोर तपस्या की । फलस्वरूप अक्षय पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बन गया ।उसे अच्छी नौकरी मिल गई । बबिता के जीवन मे खुशहाली छा गई । पर बबिता को मन मे पल-पल एक ही बात खटक रही थी कि निखिल ने मुझे हमदर्द न समझा । मुझसे सारी बातें छुपाई। क्या मै इस लायक नही थी, कि निखिल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकूं। पर बबिता ने अपने बेटे अक्षय के सामने यह बात जाहिर ना होने दी कि मै अंदर से बहुत दुखी हूं।
 एक दिन बाजार मे अचानक बबिता निखिल से टकरा गई । वह निखिल की दशा देखकर काफी हैरान थीं । वह निखिल को घर ले आती है। निखिल  बबिता से माफी मांगता है और बहुत रोता है। निखिल को अपनी करनी पर पश्चाताप होता है। और कहता है नारी शक्ति काफी प्रबल है। तुमने अकेले ही अपने जीवन की गाड़ी को सही दिशा दी। नारी अबला नही , मै तो परिस्थितियों से घबराकर भाग गया पर तुमने वक्त के आगे घुटने नही टेके। और डटकर हर परिस्थिति का सामना किया। तुमने हमारे बेटे अक्षय को बड़ा आदमी बनाया और अच्छे संस्कार भी दिए । काश! पहले समझी होती नारी शक्ति  तो आज यह दिन न देखना पड़ता पड़ता ।
— कीर्ति पाहुजा

कीर्ति पाहुजा

Kirti Pahuja C/o Satish Pahuja Kotwali Square Sehore ( M. P. )