कविता

मैं टूटकर बिखर सा गया हूँ

मैं टूटकर बिखर सा गया हूँ
मैं रेत सा फिसल सा गया हूँ
मांझी के भरोसे बैठा हूँ
लेकर कश्ती बीच दरिया में…
मंजिल मेरी गुम हो गई
मेरे चेहरे की रौनक खो गयी
जिंदगी की कशमकश में…
न सुकून, न चैन मिलता है
बड़ी बेबसी भरी है ज़िन्दगी में…
ड़र है मुझे खुद से खुद का
मैं कातिल बन न जाऊं
कहीं फंस न जाऊं गुनाहों में…
महफूज नहीं मेरा वक्त
खुदा क्यों हुआ इतना सख्त
मैं टूटकर बिखर सा गया हूँ
मैं रेत सा फिसल सा गया हूँ
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111