स्वास्थ्य

पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए कटिस्नान

यह क्रिया आँतों को मजबूत करने और पाचन शक्ति बढ़ाने में बेजोड़ है। इसके लिए चित्र में दिखाये गये अनुसार टीन या प्लास्टिक का एक टब बाजार में बना-बनाया मिलता है या आर्डर देकर बनवाया जा सकता है।

कटिस्नान लेने के लिए टब में ठंडा पानी इतना भरिये कि उसमें बैठने या लेटने पर कमर पूरी डूब जाये और पेड़ू के ऊपर एक इंच पानी आ जाये। पानी सामान्य से कुछ अधिक ठंडा होना चाहिए। आवश्यक होने पर बर्फ डाली जा सकती है। टब में जाँघिया उतारकर बैठना अच्छा है। इसकी सुविधा न होने पर जाँघिया ढीला करके पहने हुए भी बैठ सकते हैं। टब में बैठकर एक छोटे रूमाल जैसे तौलिये से पेड़ू को दायें से बायें और बायें से दायें हल्का-हल्का रगड़ना चाहिए। इतनी जोर से मत रगड़िये कि खाल छिल जाये। निश्चित समय तक कटिस्नान लेकर धीरे से उठ जाइए और पोंछकर कपड़े पहन लीजिए। उठते हुए इस बात का ध्यान रहे कि पानी की बूँदें पैरों पर न टपकें।

कटिस्नान प्रारम्भ में दो-तीन मिनट से शुरू करना चाहिए और धीरे-धीरे समय बढ़ाकर अधिक से अधिक 10 मिनट तक लेना चाहिए। इसके लिए सुनहरा नियम यह है कि जैसे ही शरीर में ठंड लगने लगे, तुरन्त उठ जाना चाहिए।

कटिस्नान के बाद शरीर में गर्मी लाना अनिवार्य है। इसके लिए या तो 4-5 मिनट हल्का व्यायाम करना चाहिए या 10-15 मिनट तेजी से टहलना चाहिए। इससे कटिस्नान का पूरा लाभ प्राप्त हो जाता है।

कटिस्नान की सरल विधि- यदि कटिस्नान के लिए टब की व्यवस्था न हो सके, तो उसके बिना भी कटिस्नान लिया जा सकता है। इसकी विधि यह है कि किसी बाल्टी में ठंडा पानी भर लीजिए। अब बाथरूम में जाँघिया उतारकर दीवाल के सहारे अधलेटी मुद्रा में बैठ जाइये। घुटने उठा लीजिए और दोनों पैरों के बीच बाल्टी को रख लीजिए। अब एक मग या लोटा लेकर उसे पानी से भर-भरकर पेड़ू पर दायें से बायें और बायें से दायें धार बनाकर डालिए। धीरे-धीरे पूरी बाल्टी खाली कर दीजिए। अगर बीच में ही ठंड लगने लगे तो उठ जाइए। अब सावधानी से उठकर और पोंछकर कपड़े पहन लीजिए और शरीर में गर्मी लाने के लिए हल्का व्यायाम कीजिए या टहलिए।

इस क्रिया से भी कटिस्नान का अधिकांश लाभ मिल जाता है। मैंने स्वयं इसी विधि से लाभ प्राप्त किया है और अपने कई मित्रों और सम्बंधियों को इसी विधि से लाभ पहुँचाया है।

अधिक सर्दी के दिनों में इस विधि से कटिस्नान नहीं लेना चाहिए। इसके स्थान पर खूब ठंडे पानी में कोई कपड़ा गीला करके उससे पेड़ू के आसपास दो-तीन मिनट तक पोंछा लगाना चाहिए। इससे कटिस्नान का आवश्यक और पर्याप्त लाभ प्राप्त हो जाता है।

लगभग सभी प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्रों में नित्य प्रातःकाल और सायंकाल पाँच मिनट का कटिस्नान लेकर एक या आधा घंटा टहलना अनिवार्य होता है और इस पर बहुत जोर दिया जाता है। वास्तव में केवल ऐसा करने से ही रोगों का आधा इलाज हो जाता है। यदि आप केवल यही करते रहें, तो फिर किसी चिकित्सा की कोई आवश्यकता नहीं है। इसी से आप पूर्ण स्वस्थ हो सकते हैं और सदा स्वस्थ बने रह सकते हैं।

— डाॅ विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com