कुण्डली/छंद

कुंडलिनी छंद : कोरोना विकट महामारी

पीड़ित सकल समाज है,कोरोना से आज |
ड्रैगन की करतूत से, गिरी सभी पर गाज |
गिरी सभी पर गाज ,विश्व को इसने मारा |
जीना है दुस्वार,समय की बदली धारा |

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संयम सद्संकलप से, बनते काम तमाम |
बार बार धों हाथ को,लें विवेक से काम |
लें विवेक से काम ,रहें अपने ही घर पर |
कोरोना मर जाए, नहीं यदि मिले उसे नर |

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हाथ मिलाना छोड़ के ,नमन करो चितलाय |
सच्ची प्रीत दिखाइये ,भय को दूर भगाय |
भय को दूर भगाय,उचित जो हो अपनाओ |
उर में दृढ़ता धार,कॅरोना मार भगाओ |

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पीड़ित देश विदेश है,बंद पड़े सब काम |
विकट वायरस है बड़ा ,कोरोना है नाम |
कोरोना है नाम, बांटता मौत फिर रहा |
कैसे छूटे जान ,खोज यह विश्व कर रहा |

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016