कविता

अपने घरों में रहो

जीवन है अनमोल इसकी कीमत तो समझ,
अपना न सही अपने घरवालों की तो सोचो,
ये वक्त नहीं  है लोगों से मिलने जुलने का,
आप मानव हो वक्त की नजाकत को तो समझो।
बस कुछ दिनों की तो बात है दोस्तों,
इस अंधेरी रात के बाद एक खुशनुमा सवेरा है दोस्तों,
अगर जिना है अपने शुभचिंतकों के साथ,
तो बस कुछ दिनों तक रहो अपने घरों में ही आप।
कैद करो खुद को अपने घरों में,
मत जाना आप बेवजह के समूहों में,
हम भारतवासी हैं दुनिया में सबसे समझदार,
इस बात का मिलकर करें आज हमसब सरोकार।
कोरोना को मत लेना कभी भी हल्के में,
मत आना आप कभी इसके लपेटे में,
दुनिया सुनी कर दी है इस महामारी ने,
कितनी ही जिंदगियाँ चली गई हैं विरानों में।
बस इतनी सी है आपसे हमारी गुजारिस,
मत भटको सड़कों पर बनकर लावारिस,
नहीं मिलेगा आपकी लाश को भी कोई उठाने वाला,
अगर कहीं पर गयी आप पर कोरोना की साया।
याद रखो हमें कोरोना को मार भगाना है,
अपने मुल्क को चीन या इटली नही बनाना है,
आओ आज मिलकर लेते हैं  यह प्रण,
सरकार की हिदायतों को मानेंगे हमसब मिलकर।
नहीं है अभी तक इस महामारी की कोई भी दवा,
बस काम आएगी अपनों की ही दुआ,
कहा है कवि बिप्लव मेरी बात तो सुनों,
कोरोना को हराने के लिए अपने घरों में ही रहो।।
— बिप्लव कुमार सिंह

बिप्लव कुमार सिंह

बेलडीहा, बांका, बिहार