कहानी

अनकहा प्यार

कुछ खोजती आँखे, बात करने का अलग ही अंदाज – जाने कब तुम से प्यार हो गया, खुद मुझको ही पता न चला । अहसास तो शायद तुमको भी था, पर शायद तुम्हारे लिए दोनों की उम्र में दस वर्ष का फासला ही सबसे बड़ी दीवार था । बड़े भैया के दोस्त थे तुम और मैं…  बड़े भैया के लिए बेटी की तरह ही तो थी । चाह कर भी तुम्हारे दिल में न झांक पाई, जहाँ यकीनन मेरी ही तस्वीर लगी थी । पर कहीं तुम मेरे बारे में गलत न सोचो, यही सोच कर पहल करना मुमकिन ही न था ।

कल भैया – भाभी की बातें सुनी । मेरी शादी की ही बात चल रही थी। कितना असहज सी हो गयी थी मैं । पल भर को मन किया कि भाभी को जा कर मन की बात कह दूँ, पर फिर कहती भी तो क्या? तुमने मुझसे तो कभी कुछ कहा ही नहीं था । नहीं, यकीनन मुझे ही गलतफहमी हुई है, अगर तुम भी मुझे चाहते, तो कोई इशारा तो करते ।

आज सुबह जब तुम घर आए, तो मेरे अलावा घर में कोई नहीं था । भैया-भाभी दोनों किसी जरूरी काम से बाहर गए थे । शायद तुम भी कुछ खोजने ही इधर आए थे। चाय पीने का आग्रह तुम टाल न पाए। चाय पीते हुए, चेहरे की बोझिल उदासी छिपा पाना तुम्हारे लिए भी मुमकिन न था । साफ़ लग रहा था कि तुम कहने की हिम्मत तुम जुटा रहे हो ।

“सुनो ! कह क्यों नहीं देते? दिल चीख चीख कर बोल रहा था । पर तुम…  कुछ कहते-कहते फिर से रुक गए और यकायक चाय का कप मेज पर छोड़ कर बाहर जाने को मुड़ गए ।

“कुछ कहना था”, अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया ।

“हम्म्म, नहीं तो ।” अजीब सी कशमकश से लड़ते तुम बोले, “मैं शहर छोड़ कर हमेशा के लिए जा रहा हूँ ।” कह कर तुम तेज़ी से घर के बाहर चले गए और मैं… मैं वहीँ खड़ी की खड़ी रह गयी ।

“आखिर क्यों तुम कुछ नहीं बोल पाए? क्या हो जाता अगर तुम,,,, बस एक बार दिल की बात बोल देते।” आँखों से आंसू पतझड़ की तरह बहने लगे । रोते रोते कब सो गयी, पता ही न चला । घंटी की आवाज से नींद खुली । भैया – भाभी घर आ चुके थे ।

“यह किसका पर्स है ? क्या कोई आया था ? अरे !,,,,, यह तो विनय का लगता है ” ,पर्स उठाते हुए भैया बोले ।

“भैया, वो हमेशा के लिए शहर छोड़ कर जा रहे हैं । उन्हें रोक लो ।” आंसुओं का सैलाब उमड़ आया था आँखों में ।

हैरानी से कभी मुझे और कभी खुले पर्स को देखते भैया सब समझ चुके थे । “अभी आया” कह कर वे घर से निकल गए ।

और लगभग आधे घंटे बाद विनय और भैया घर में ही थे। विनय का पर्स मुझे थमते हुए बोले, “संभाल अपनी अमानत । और हाँ ! इसमें अपनी अच्छी वाली फोटो लगा ले । इसमें जो तेरी फोटो लगी है, उसमे तूं मोटी लग रही है ।” चिढ़ाते हुए भैया बोले ।

विनय मंद – मंद मुस्कुरा रहे थे और मैं ,,, अविश्वास से अपनी ही किस्मत पर रश्क कर रही थी ।

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed