कविता

एक मासूम बच्ची का दर्द

एक नन्ही गिलहरी दाना देखन चुपके चुपके आई है ।
देख जगत की रीत यहां वो थोड़ा सा सुकचाई है।

नन्हे कदमों को धीरे-धीरे कुछ सोचकर ही बड़ाई है।
एक नहीं गिलहरी दाना देखन चुपके-चुपके आई है।

मासूम सी उसकी आँखों ने प्यार के नजराने देखें,
दानों के उस ढेर पे जाके वो अनजाने देखें,

समझ न पाई कुछ भी वो जाल में किसके फन्साई है।
एक नन्ही गिलहरी दाना देखन चुपके -चुपके आई है ।

बहुत तडपी चीखें भी दी किसी को न सुनाई,
आँख में आंसू जमीं पर वो बेसुध ही गिराई,

देख तमाशा जग ने ही फिर खरी खोटी ही सुनाई है।
एक नन्ही गिलहरी दाना देखन चुपके -चुपके आई है ।

वीणा चौबे

हरदा जिला हरदा म.प्र.