संस्मरण

उस सहृदय सरदार जी को शत – शत नमन

  • जीवन रूपी यात्रा के दौरान मानव के रूप में कई ऐसे देवता स्वरूप मनुष्य भी मिलते हैं, जो कि हमारे मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। एक हादसे के दौरान ऐसे व्यक्ति से मुलाक़ात हुई। बदहवास की स्थिति में होने के कारण मैं उनका नाम, पता पूछ न सका। मैं जब भी कोई हादसा या दुर्घटना देखता हूं तो उस महानुभाव का स्मरण करके, आदर के साथ अपना शीश झुकाना अपना कर्तव्य समझता हूं।
    काफ़ी वर्षों पुरानी घटना है। मैं तब बेलगाम (कर्नाटक) में रहने वाले मित्र शेखर के साथ स्कूटर पर पीछे बैठकर गंतव्य स्थान की ओर चला। स्कूटर 30-40 किमी. की धीमी गति से चल रहा था कि अचानक एक मोड़ पर शेखर जी के हाथ से स्कूटर छूटा और वे धड़ाम से नीचे गिर पड़े। मैं स्कूटर के साथ घसीटता कुछ ही दूरी पर पेड़ से स्कूटर टकराकर रुकने पर उठा और शेखर जी की तरफ़ दौड़ा। मुझे मामूली खरोंचे आई थीं। सौभाग्य से आगे -पीछे कोई गाड़ी नहीं थी, वरना बड़ा अनर्थ हो सकता था।
    शेखर जी के पीठ की हड्डी टूटी थी, जिसके कारण वे खड़े होने में असमर्थ थे। मैं घबराया। मदद के लिए आते– जाते वाहनों को रोकने लगा। कई वाहन चालक दुर्घटना, पुलिस केस समझकर बिना रुके आगे बढ़ते जा रहे थे। मैं चीख – चिल्लाकर, रो कर थक चुका था।
    इतने में आशा की उजली किरण नज़र आई। एक हट्टे – कट्टे सैनिक सरदार जी साइकिल पर आते दिखे। मेरे इशारे पर तुरंत रुके। मैंने संक्षेप में विवरण दिया। सरदार जी ने सामने से सिटी बस आते देख, समय गंवाए बिना, सड़क के बीचों – बीच खड़े होकर अपने दोनों हाथ पंछी की तरह फैलाए। ड्राइवर ने तुरंत बस रोकी। सरदार जी ने अकेले ही, दोनों हाथों से शेखर जी को उठाकर कंधे का सहारा दिया, जिस तरह मां अपने बच्चों को देती है। लगभग दौड़ते बस में प्रवेश किया। खाली पड़ी पिछली लंबी सीट पर शेखर जी को सुलाया। मैंने आभार प्रकट करते हुए दोनों हाथ जोड़े। भावुक होकर कुछ कहना चाहता था, लेकिन रूआंसा होने के कारण शब्द नहीं फूटे। सरदार जी ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर, ढ़ाढ़स बंधाते कहा, “ तुस्सी चिंता मत करो। वाहे गुरू नीं मेहर से तेरा दोस्त भला – चंगा हो जाएगा। “ मैंने संतुष्टि की सांस ली। मानव के रूप में मिले मसीहा को आंखों से ओझल होने तक एकटक निहारता रहा।
    – अशोक वाधवाणी

अशोक वाधवाणी

पेशे से कारोबारी। शौकिया लेखन। लेखन की शुरूआत दैनिक ' नवभारत ‘ , मुंबई ( २००७ ) से। एक आलेख और कई लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ नवभारत टाइम्स ‘, मुंबई में दो व्यंग्य प्रकाशित। त्रैमासिक पत्रिका ‘ कथाबिंब ‘, मुंबई में दो लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ आज का आनंद ‘ , पुणे ( महाराष्ट्र ) और ‘ गर्दभराग ‘ ( उज्जैन, म. प्र. ) में कई व्यंग, तुकबंदी, पैरोड़ी प्रकाशित। दैनिक ‘ नवज्योति ‘ ( जयपुर, राजस्थान ) में दो लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ भास्कर ‘ के ‘ अहा! ज़िंदगी ‘ परिशिष्ट में संस्मरण और ‘ मधुरिमा ‘ में एक लघुकथा प्रकाशित। मासिक ‘ शुभ तारिका ‘, अम्बाला छावनी ( हरियाणा ) में व्यंग कहानी प्रकाशित। कोल्हापुर, महाराष्ट्र से प्रकाशित ‘ लोकमत समाचार ‘ में २००९ से २०१४ तक विभिन्न विधाओं में नियमित लेखन। मासिक ‘ सत्य की मशाल ‘, ( भोपाल, म. प्र. ) में चार लघुकथाएं प्रकाशित। जोधपुर, जयपुर, रायपुर, जबलपुर, नागपुर, दिल्ली शहरों से सिंधी समुदाय द्वारा प्रकाशित हिंदी पत्र – पत्रिकाओं में सतत लेखन। पता- ओम इमिटेशन ज्युलरी, सुरभि बार के सामने, निकट सिटी बस स्टैंड, पो : गांधी नगर – ४१६११९, जि : कोल्हापुर, महाराष्ट्र, मो : ९४२१२१६२८८, ईमेल ashok.wadhwani57@gmail.com