सामाजिक

प्रेम, परवाह और समर्पण

पिछले दिनों सुधा से फोन पर बात हो रही थी,शिकायत कर रही थी कि उसके पति उसकी बिल्कुल भी परवाह नही करते, कितना काम करती हूं, न कोई अहसान न कोई परवाह। तंग आ गई मैं इस लॉक डाउन में काम करते करते। उधर सौरभ की शिकायत थी कि जब कभी मैं कहता हूं इसको कि तुम्हारी हेल्प कर देता हूँ, बस यही मना कर देती है कि रहने दीजिये कभी आपने झाड़ू, बर्तन ऐसे काम किये नही तो कैसे कर पाएंगे? इतना गंदा काम करेंगे कि आपके पीछे पीछे झाड़ू मुझे दुबारा लगानी तो पड़ेगी ही, क्यों दो बार मेहनत की जाए।रहने दीजिए आप, मैं अपने आप कर लुंगी। यह शिकायत एक दो घरों की नहीं बल्कि कई घरों की है।
बेचारे पति जिन्होंने बचपन से माँ व बहन को घर मे काम करते हुए देखा,हर काम उन्हें समय पर किया हुआ मिलता था।
उनमें से कइयों को यह तक नही पता कि घर में पानी का गिलास तक नहीं भरवाया गया और इन वर्षों में चली नारी सशक्तीकरण के दौर में उन पुरुषों के लिए खुद को बदलना थोड़ा मुश्किल हो गया।
फिर ऑफिस का समय इस तरह रहा कि सुबह नौ बजे से शाम छह सात बजे ऑफिस में बिताने के बाद घर आकर सोफे पर रिमोट लेकर रिलैक्स होना उनकी दिनचर्या रही थी लेकिन आज उनमें से कई इतने खाली हैं कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि कहाँ जाए, क्या करें? पत्नी को दिया गया सहायता कभी कभार अनुमोदित भी हो जाये और जब डरते डरते अनाड़ियों की तरह कोई काम करदें और फिर पत्नी द्वारा उसमें निकाली गई मीन मेख उन्हें अलग थलग सा कर देती है। वे समझ नहीं पाती कि यह  परवाह या प्यार नहीं है तो और क्या है?

दूसरी तरह विपिन और काव्या का केस है।काव्या का कहना है, ” विपिन मेरी बहुत केअर करते हैं। हालांकि उनको घर का काम नहीं आता लेकिन मेरा पूरा सहयोग करते हैं। अब सुनने पढ़ने वाला भी असमंजस में पड़ जायेगा कि  जब काम नहीं आता तो सहयोग कैसे किया गया? उनसे इसका रहस्य पूछा गया तो काव्या ने ही जवाब दिया, ” जब सुबह मैं उठती हूँ और चाय बनाकर लाती हूँ तब विपिन बेडशीट सही कर देते हैं। बच्चों को समय पर उठा देते हैं उनको साथ मे लेकर दूध चाय का जो काम होता है वह निपटा देते हैं उतनी देर में मैँ घर की सफाई कर लेती हूं। शाम की चाय हमेशा विपिन ही बनाते हैं और सबसे बड़ी बात, जब मैं पसीने से तरबतर हो जाती हूँ तब एसी या कूलर की स्पीड को सेट करते हुए ठंडे पानी से मेरे लिए शिकंजी जरूर बना देते हैं। वह शिकंजी मेरी दिन भर की थकान का टॉनिक होती है। हालांकि उनको चपाती, सब्जी वगैरह नहीं आता लेकिन मेरे पास कुर्सी डाल कर बैठ जाते हैं और मुझे एहसास करवाते हैं कि मैं हूँ न,’ सच कहूं इस गर्मी में भी कब रोटी बन जाती है मुझे पता भी नहीं चलता।

बस यही फर्क रह जाता है हमारे समंझने में। प्रेम सभी करते होंगे लेकिन जब तक आप उसको शब्दों या क्रिया द्वारा व्यक्त न किया गया हो तब किस काम का वह प्रेम। प्रेम हमेशा परवाह मांगता है, और वास्तव में प्रेम है भी वही जो अपने जोड़ीदार के सुख दुःख को समझने की काबिलियत रखें। पहले केस में सुधा और सौरभ दोनों को एक दूसरे से शिकायत है, सुधीर को उससे प्रेम है लेकिन अभिव्यक्ति या सामंजस्य का माध्यम सही नहीं है उसका, वह नहीं सोचता कि मेरे कौनसे काम या गतिविधि सुधा को सुकून पहुंचाएगी और कौनसी तकलीफ देगी। उसे केवल इतना लगता है कि मैंने काम करना चाहा लेकिन सुधा को ही वह पसन्द नहीं आता और वह क्लेश के बीच बो देती है। उसी जगह पर विपिन बाजी मार ले जाता है। वह काव्या की सहायता उन कामों में करता है जो छोटे छोटे होते है लेकिन उनकी जगमगाहट ऐसी हो जाती है कि  काव्या की दिनचर्या में काम करना भारी न होकर हल्कापन महसूस कराता है उसे।

इस लॉक डाउन में लगभग दो महीने से काफी लोग घर पर हैं और कइयों की जिंदगी में आमूलचूल परिवर्तन आये हैं ऐसे जोड़े भी हैं जो काफी समय से इतनी तनातनी में थे कि  हम एक दूसरे के साथ समय भी नहीं बिता पाते।आज इस भरपूर समय मे एक दूसरे के साथ बहुत खुशी खुशी बिता रहे हैं।

कई ऐसे दम्पति भी हैं जो दोनों के नौकरीपेशा होते हुए  उनके रिश्ते में इतनी कड़वाहट भर गई थी कि कई बार लगता था दोनों का   अलग होना ही बेहतर है। बच्चों को भी पूरा समय नहीं दिया जाता था। आज वही दम्पत्ति इस अवधि में एक दूसरे की परवाह करते हुए अपना प्रेम भी जाहिर कर रहे हैं और छोटे बच्चे जिनको माता पिता हमेशा अपने पास मिलते हैं वे उनके लगाए बागों में खिलते फूल की तरह मुस्कुराते हुए उनके रिश्तों को और मज़बूती दे रहे हैं।

प्रेम शब्द बहुत गहराई लिए हुए है, यह बिना परवाह के पनप भी नहीं सकता, यदि आप अपने जीवनसाथी को प्रेम करते है तो उसकी प्रथम सीढ़ी परवाह से ही शुरू होती है। उसकी हंसी,उसका मुस्कुराना सबके पीछे सुख व दुःख को पहचानना ही सच्चे प्रेम की परवाह है। कई बार दूसरा साथी छोटी सी बात पर भी बड़ी प्रतिक्रिया दे देता है वह  तात्कालिक प्रतिक्रिया हमारे तात्कालिक व्यवहार का परिणाम नहीं हो सकती, उसकी जड़ें बहुत गहराई तक मिलेंगी आपको। पति या पत्नी सोचते है कि हमने ऐसा कुछ कह भी नहीं दिया कि इतना गुस्सा होने की बात थी या  केवल छोटा सा मज़ाक ही तो किया था।

आपका सोचना सत्य हो सकता है कि उस परिस्थिति विशेष में आपने छोटा सा मज़ाक किया होगा या छोटी सी सहायता काम मे नहीं  की होगी लेकिन उसकी जड़े बहुत गहराई पकड़े हुए होती हैं जो उस समय मजबूती लेकर प्रकट हो जाती हैं।
हो सकता है आपने अपने साथी की उस समय सहायता न की हो जब उसे आपकी अत्यधिक आवश्यकता हो या  उस समय मन को नहीं समझा होगा जब उसने आपसे कुछ कहा होगा।

परवाह केवल प्रेम करने से भी नहीं आ जाती इसके लिए अपने साथी के प्रति समर्पण की भी आवश्यकता होती है। एक दूसरे की भावनाओ को अनकहे समझना समर्पण की सीढ़ी है  जबकि हम लोग यह भ्रम पाले रहते हैं कि मैं आगे वाले को ज्यादा समझता हूँ गलती उसकी ही है। रिश्तों को निभाने में गलतियां नहीं अच्छाईयां देखी जाती हैं जिसे परवाह से ही शुरू किया जा सकता है।
परवाह होगी तो छोटी मोटी गलतियों को नजरअंदाज करना भी आ जाएगा और प्रेम भी बढ़ेगा, जब प्रेम बढ़ेगा तब रिश्तों में कड़ुवाहट की जगह मधुरता का समावेश होगा। यही मधुरता रिश्तों को प्रगाढ़ बनाती है।

पहले के समयाभाव में बिगड़े रिश्ते अब सुधरने भी लगे हैं। पति पत्नी के पास घरेलू जिम्मेदारियों के साथ एक दूसरे को देने के लिए समय है जो पिछली गलतियों को सुधारने का सही मौका है। नौकरीपेशा दम्पत्ति,काम घर का कर रहे हों या वर्क फ्रॉम होम के जरिये ऑफिस का, पति पत्नी दोनों एक दूसरे की जरूरतों, स्वास्थ्य,समय व मूड का ध्यान रखते हुए सामंजस्य बनाते हुए काम निपटाए तब यह घर व ऑफिस दोनों मैनेज हो जाएगा। जब एक कि मीटिंग चल रही हो तब दूसरा घर व बच्चों को देखे न कि यह कह कर पल्ला झाड़ ले कि यह काम मेरा नहीं है। पत्नी जब अपने ऑफिस की मीटिंग खत्म करके उठे और उसे सब्जी बनाई हुई मिल जाये तब चपातियां सेकते हुए उसके चेहरे का सुकून आपको तृप्त कर जाएगा।

मेरा यह मानना है कि रिश्ता चाहे कोई भी हो, वह प्रेम, परवाह और समर्पण से सींचने पर ही फलीभूत होता है।

— कुसुम पारीक

कुसुम पारीक

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