कविता

दिलखुश जुगलबंदी-28

घमंड छोड़ो, परमानंद से नाता जोड़ो

बुज़ुर्ग कहते थे इक वक़्त आएगा,
जिस दिन जहां पे डूबेगा सूरज वहीं से निकल आएगा.
-सुदर्शन खन्ना

ख्याल जिसका था, मुझे ख्याल में मिला मुझे;
सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे;
किसीको अपने अमल का हिसाब क्या देते;
सवाल सारे गलत थे, जवाब क्या देते!
-रविंदर सूदन

बहुत अनमोल है ये साँसें,
उसकी मर्जी से मिलती है,
बस अपनी ही मर्जी से इन्हें प्रदूषित न कर देना.

प्रेम की धारा बहती है जिस दिल में,
चर्चा उसकी होती है हर महफ़िल में.

हर साँस की कीमत का अंदाजा लगा लेना,
देह से इसका नाता टूटे
उससे पहले ही सूरती के धागे से
प्रभुता की कलाई पर प्रेम का धागा बाँध लेना.

मांगो तो अपने रब से मांगो जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत,
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना,
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी,
दुनिया में कोई भी चीज़ अपने आपके के लिए नहीं बनी है.

स्वयं में असहाय महसूस करती है ये
जब भीतर परमात्मा की बजाय अहंकार से मुलाक़ात कर बैठती है.

कभी भी “कामयाबी” को दिमाग
और ‘नाकामी’ को दिल में जगह नहीं देनी चाहिए
क्योंकि “कामयाबी” दिमाग में घमंड
और “नाकामी ” दिल में मायूसी पैदा करती है.

ये साँसें भी अपना सब कुछ एक देह पर निवेश कर देती हैं
इन साँसों को कंगाल मत होने देना.

व्यक्ति क्या है यह महत्वपूर्ण नहीं है,
व्यक्ति में क्या है यह महत्वपूर्ण है.

बुरे वक़्त में कंधे पर रखा गया हाथ,
कामयाबी की तालियों से ज्यादा मूल्यवान होता है.

ओस की बूँद-सा है ज़िन्दगी का सफर,
कभी फूल में कभी धूल में.

‘ज़िंदगी’ उसी को ‘आज़माती’ है,जो हर मोड़ पर चलना जानता है….!!
कुछ “पाकर” तो हर कोई मुस्कुराता है,
ज़िंदगी शायद उनकी ही होती है
जो बहुत कुछ “खोकर” भी मुस्कुराना जानता है..!!

मिट्टी से ही आये हैं मिट्टी में ही मिल जाना है,
जब हकीकत यही है तो किस बात पे इतराना है.

यही इतराना और घमंड करना जीवन को व्यर्थ कर देता है,
जीवन की सारी खुशियों को अर्थहीन कर देता है,
घमंड न करना जिंदगी में तक़दीर बदलती रहती है,
शीशा वही रहता है बस तस्वीर बदलती रहती है,
घमंड शराब जैसा होता है,
खुद को छोड़कर सबको पता चलता है की इसको चढ़ गयी है,
घमंड आपको यह महसूस नहीं होने देता की आप गलत हो,
अगर खुद को गलत सम्झोगे ही नहीं तो सुधार क्या करोगे!
खुद में सुधार करना है, तो घमंड को छोड़ो,
घमंड छोड़ो, परमानंद से नाता जोड़ो,
घमंड छोड़ो, परमानंद से नाता जोड़ो,
घमंड छोड़ो, परमानंद से नाता जोड़ो.
लीला तिवानी
आज फिर दो धुरंधरों की वाक-जुगलबंदी ने दिल को खुश करके अवाक कर दिया, फिर भी उसमें एडीटर को परमानंद से नाता जोड़ने का मनभावन संदेश दिखाई दे गया. यही तो है दिलखुश जुगलबंदी का दिलखुश संदेश!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “दिलखुश जुगलबंदी-28

  • लीला तिवानी

    “अहंकार मिटा दे, ईश्वर मिल जाएगा. अहंकार छोड़े बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता.”

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