कविता

जीवन_का_अंतिम_सुख

आज घर वास का तीसवां दिन है ।
चेहरे का रंगत मलिन है ।।
घर बार विहीन …!
वह मिली थी मुझे …!!
जीवन की अंतिम सुख …!!!
जैसे गुलाब का एक दिन …!
एक डरावनी यात्रा …!!
मौसमों के मकान सूने है …!!!
आसमां और भी है …!
हाथों से रोटी का अंतिम ,
टुकड़ा नीचे गिरने के बाद ।
शोकाकुल की अंतिम आंसू ,
जमीन पर गिरने के बाद ।।
जीवन की अंतिम सांस ,
लेकर मरते मरते बखत ।
नहीं चाहिए अंतिम सुख ,
भोग इतना दुख करने के बाद ।।
नहीं चाहिए वह रोटी का टुकड़ा ,
जिसकी भूख है और कितने को ।
नहीं चाहिए वह पानी की गिलास ,
जिसकी प्यास है और कितने को ।।
हाथों से रोटी का अंतिम ,
टुकड़ा नीचे गिरने के बाद ।
शोकाकुल की अंतिम आंसू ,
जमीन पर गिरने के बाद ।।
जीवन की अंतिम सांस ,
लेकर मरते मरते बखत ।
नहीं चाहिए अंतिम सुख ,
भोग इतना दुख करने के बाद ।।
नहीं चाहिए वह हंसी मुस्कान ,
जिसके लिए तड़प रहे हैं कयौं कयौं ।
 नहीं चाहिए वह नैन वह चैन ,
जिससे आंसू बह रहे हैं कयौं कयौं ।।
हाथों से रोटी का अंतिम ,
टुकड़ा नीचे गिरने के बाद ।
शोकाकुल की अंतिम आंसू ,
जमीन पर गिरने के बाद ।।
जीवन की अंतिम सांस ,
लेकर मरते मरते बखत ।
नहीं चाहिए अंतिम सुख ,
भोग इतना दुख करने के बाद ।।
— मनोज शाह मानस 

मनोज शाह 'मानस'

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