पापा ने ली मोटर कार,
मोटर में हैं पहिए चार,
मोटर की पौं-पौं को सुनकर,
सैर को मैं होता तैयार.
सड़कों पर चलती है मोटर,
गियर से करती है काम,
करके शान से इसमें सवारी,
मिलता है मुझको आराम.

परिचय - लीला तिवानी
लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं।
कविता अच्छी लगी। हार्दिक धन्यवाद। सादर नमस्ते जी।
प्रिय मनमोहन भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन.