धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

विभीषण की शरणागति

भारत में भोले भाले हिंदुओं के बीच एक जुमला चलाया गया “घर का भेदी लंका ढाए”। भोले भाले हिंदुओं के मन में यह बात बैठाई गई कि अपहरण कारी रावण सही था और विभीषण गलत था जिसने रावण को गलत काम करने से रोका। जबकि विभीषण ने रावण के गलत काम से रावण की लात खाकर और राम के दल में मिलकर पूरी लंका को विनाश होने से बचा लिया।

कोई कथा वाचक इस बात को नहीं कहता क्योंकि भगवान की प्रतिज्ञा थी – निसिचर हीन करहु महि भुज उठाई प्रण की कीन

मगर विभीषण ने राम को बताया कि सीता हरण रावण की अपनी योजना है इसमें सारे दैत्य सम्मिलित नहीं है, इस वजह से विभीषण समेत पूरी लंका मरने से बच गई और जब हम लंका के प्रति सहानुभूति करते हैं विभीषण को दोष देते हैं। इसका मतलब हम अत्याचारी रावण के प्रति सहानुभूति करते हैं जिसने सीता जी का हरण किया। विभीषण को बुरा कह कर हम भगवान की भक्ति को बुरा कहते हैं।

आप सबसे कर बद्ध निवेदन है कि यदि मानस पीयूष में लिखी यह बात गलत है तो आप संतो को और हमको सही करें। आपको पता ही होगा सरिता और मुक्ता द्वारा रामायण के विरोध में जो प्रचार किया गया था वह भारत के भोले भाले हिंदुओं के जनमानस में घर कर गया। सरिता और मुक्ता पत्रिकाएं भारत में घर-घर में प्रचलित थी और सरकार का पूरा सहयोग उन्हें था। इस प्रकार धर्म विरोधी Narrative पुरानी सरकारों के आश्रय से ही प्रचलित हुए।

इस बदलते युग में हमें विभीषण की प्रतिष्ठा को वापस दिलाना होगा क्योंकि विभीषण की प्रतिष्ठा ही भक्ति की, देशभक्ति की प्रतिष्ठा है और विभीषण ने भाई के कुकर्म के विरुद्ध देश को बचाने का प्रयास किया। वही बात जो भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को समझाई कि धर्म मुख्य है चाहे धर्म के खिलाफ अपना भाई ही क्यों ना हो। ऐसा करने से हम रावण के पक्ष से निकलकर राम के पक्ष में खड़े हो जाएंगे और श्री राम की भक्ति को प्राप्त करेंगे।

आपका कृपा कांछी
श्रीकृष्णदास किंकर