गीत/नवगीत

गीतिका छन्द – इक अपूर्ण क्षति

बोझ सीने में दबाकर,सब अकेले सह गए ।
कुछ कभी कहते किसी से ,खुद सिसकते रह गए ।
हाथ जीवन से छुड़ाया,मृत्यु को अपना लिया ।
हैं सभी हैरान तुमने, ये अचानक क्या किया ।।
आस का हर बंध तोड़ा,डोर जीवन तोड़कर ।
जिंदगी सस्ती नहीं थी,जो गए हो छोड़कर।
मुश्किलें हैं अंग जीवन का नहीं कोई सजा ।
जो करे संघर्ष जीवन में वही पाये मजा ।।
हा! भविष्यत का सुनहरे रह गया क्या अर्थ अब ।
बंद दरवाजे हुए अरु, हो गया है व्यर्थ सब ।
इक कहानी बन गयी है, इक कहानी को मिटा ।
छल चली है मृत्यु श्वासें, है कहीं कोई लुटा।।
घूंट पीकर खून के गल,फंद वह बुनता रहा ।
 मृत्यु से पर  पूर्व सौ -सौ,बार वो मरता रहा ।
जिंदगी बन रेत हाथों,से फिसलती है जहां ।
आत्महत्या की यकीनन, ख्वाहिशें पलती वहां ।।
— रीना गोयल

रीना गोयल

माता पिता -- श्रीओम प्रकाश बंसल ,श्रीमति सरोज बंसल पति -- श्री प्रदीप गोयल .... सफल व्यवसायी जन्म स्थान - सहारनपुर .....यू.पी. शिक्षा- बी .ऐ. आई .टी .आई. कटिंग &टेलरिंग निवास स्थान यमुनानगर (हरियाणा) रुचि-- विविध पुस्तकें पढने में रुचि,संगीत सुनना,गुनगुनाना, गज़ल पढना एंव लिखना पति व परिवार से सन्तुष्ट सरल ह्रदय ...आत्म निर्भर