कविता

साॅंस वादा करो

साॅंस तुम चलने लगी थी जब पहली बार
मां की कोख में थी मैं बेखबर और बेकरार
बाहर आने का कर रही थी इंतजार
समय बीता और कोख से गोद तक आ गई मैं
गदगद थी पाकर मां का असीम प्यार
तुम चलती रही हर पल मेरे साथ
तुम्हारी गति को महसूस करती हूॅं मैं
अपने भीतर, सोते जागते
चारों पहर, दिन और रात
उस दुनिया से इस दुनिया तक का सफर
खुशनुमा रहा अभी तक
तुम आगे भी साथ निभाना
साॅंस तुम थक मत जाना
करने हैं अभी मुझे कई काम
जीतने हैं अभी कुछ मुकाम ।
आगे भी निभाती रहोगी मेरा साथ
साॅंस तुम वादा करो ।

— अमृता पांडे

अमृता पान्डे

मैं हल्द्वानी, नैनीताल ,उत्तराखंड की निवासी हूं। 20 वर्षों तक शिक्षण कार्य करने के उपरांत अब लेखन कार्य कर रही हूं।