गीत/नवगीत

कुहुक- कुहुक कोयलिया बोले

उपवन-उपवन शाखा- शाखा ,कुहुक- कुहुक कोयलिया बोले
मीठे- मीठे गीत सुनाकर,  आमों में मीठा रस घोले ।
 
आम्र वृक्ष फल-फूल रहे हैं ,हरियाली हर ओर छा रही ।
वात बह रही मदिर मदिर जब,हाय!सजन की याद आ रही। 
अंग-अंग पुलकित धरणी का ,अरु अम्बर छाई उमंग है ।
लहर-लहर आनन्दित करती ,सागर में उठकर तरंग है ।
पावन रुत की छटा सुहावन,डोल रहा मन पवन  हिंडोले ।
 
उपवन-उपवन शाखा- शाखा ,कुहुक- कुहुक कोयलिया बोले ।
 
अमराई में रंग- बिरंगे ,भांति- भांति के पुष्प खिले हैं ।
दिशा दिशा से चंचल पक्षी,करे चकित यूं यहां मिले हैं ।
प्राकृतिक अद्भुत सुंदरता ,सृष्टि गहन विस्तार लिए है।
मुग्ध करे यह दृश्य मनोहर,हृदय उतारे नयन दियें हैं ।
स्वर्णिम इन अनमोल पलों में, चहक कोकिला  इत उत डोले ।
 
उपवन-उपवन शाखा- शाखा ,कुहुक- कुहुक कोयलिया बोले ।
 
— रीना गोयल 

रीना गोयल

माता पिता -- श्रीओम प्रकाश बंसल ,श्रीमति सरोज बंसल पति -- श्री प्रदीप गोयल .... सफल व्यवसायी जन्म स्थान - सहारनपुर .....यू.पी. शिक्षा- बी .ऐ. आई .टी .आई. कटिंग &टेलरिंग निवास स्थान यमुनानगर (हरियाणा) रुचि-- विविध पुस्तकें पढने में रुचि,संगीत सुनना,गुनगुनाना, गज़ल पढना एंव लिखना पति व परिवार से सन्तुष्ट सरल ह्रदय ...आत्म निर्भर