गीत/नवगीत

गीत – प्रकृति की सौगातें

ये बहारें ये मौसम,ये नज़ारे ये सावन,।,
जीवन को मिली हैं!ये सौगातें मन भावन
ये धरती ये अम्बर,ये हरियाली पावन।।
ये मौसम ये बहारें
हर बार एक जैसी ही मिली
ये दिन ये रातें कभी न बदली,
ये जल धाराओं के नगमें, ये नदियों के संगम
इन्हें देख हो उठा आनन्दित,
ये छोटा सा मन,।
ये फूलों की खुशबू ये परिन्दों की चहचहाट से,
खिल उठा घर आँगन।।
हिमालय की धडकनों से निकली ,
ये बहारें और ये फूलों भरी खुशबू
मिला प्रकृति से भरा ये जीवन,।,
ये बहारें ये मौसम, ये मदमस्त सावन,।।,
खिला है अम्बर से धरा पर
इंद्रधनुषी रंग,
मिलन को तरसने लगा है, ये चंचल मन,।,
फूलों की खुशबू मेहन्दी का ये रंग
महकने लगी हरियाली के आँचल से,
ये धरा और ये पावन स्थल,
भीग रहा है सावन की इन
छम-छम, बूंदो से ये मन,
हो उठी है ये धरा मदमस्त
गाने लगी हैं कोयल, पपिहा की मधुर धुन,।,
नाचने लगे हैं,मोर राधाकृष्ण के आँगन
सौंदी सी हवाओं का अहसास कर रहा है ये मन।।
कितने हँसी और पावन हैं ये प्रकृति के रंग,
चारों दिशाएँ भरी पड़ी हैं प्रकृति की इन अद्भुत सौगातों के संग
ये मौसम ये बहारें और ये सावन,।,
कितना हँसी है,और कितना पावन
ये धरती ये अम्बर मन भावन।।

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)