कविता

स्वतंत्रता की कहानी

दिन था वो शुक्र सन् सैंतालिश महीना अगस्त पंद्रह की,
रचा नया इतिहास बनी कहानी स्वतंत्र भारत की ।।
देकर लहू लुटाकर अपना सर्वस्व किया समर्पित देश को,
जाने कितने त्याग दिये इस धरती के वीरों ने मिटा कर खुद को।।
कतरा-कतरा बहाया पर थमे नहीं उनके पाँव,
जला कर मशाल क्रांति का बढ़ते रहे वो क्या धूप क्या छाँव।।
बेड़ियों मे जो जकड़े थे देश के लोग,
बनाया था जिसने हम सबको अपना गुलाम,
अब वक़्त नहीं था सहने की जाग चुकी थी आवाम,
कफनों को लेकर हाथों मे निकल पड़े थे हमारे शूर वीर जवान,
भुला ना सकेंगे कुर्बानीयों को उनकी जिनसे हैं हमारी शान।।
जर्रा-जर्रा चीख पुकारा भारत माता की जय,
बजा बिगुल लड़े डट कर हुई दुश्मनों की पराजय।।
लेकर इंकलाब का नारा खदेड़ा अंग्रेजों को,
चुम गए फांसी विरंगनो की हुई गोद सुनी,
सत-सत नमन उन शूर वीरों की विजय को।।
लिप्त हुए तीन रंगों की तिरंगे में,
अमर शहीद कहलाये वो भूली नहीं जाए जिनकी कहानी,
लिखी इतिहास के पन्नों पर स्वतन्त्रता की ये कहानी,
आज दोहराए चलो फिर से शूर वीरों की कुर्बानी।।

— सरिता श्रीवास्तव

सरिता श्रीवास्तव

जिला- बर्धमान प्रदेश- आसनसोल, पश्चिम बंगाल