लघुकथा

पलंग-पलंग स्वाहा

मेरे दादाजी कहा करते थे कि उनके दादाजी ‘पलंग’ पर कभी नहीं सोये, दादाजी के पिताजी यानी मेरे परदादा भी पलंग पर कभी नहीं सोये थे ! मेरे दादा तो पलंग पर सोये ही नहीं ! मेरे पिताजी ‘पलंग’ पर नहीं सो रहे हैं और मैं भी नहीं सो रहा हूँ और मैंने अबतक विवाह नहीं किया है, सो आगे का बता नहीं पाऊंगा !
दरअसल, मेरे 5 पुख्तों के पास पलंग ही नहीं थे यानी अब भी नहीं है !
दादाजी के अनुसार, साग बेचनेवाली एक सब्जीफ़रोशीन के द्वारा साग बेचने के समय ‘पला…सुवा…चुक्का’ कह कर साग बेचने और इस संवाद का भावार्थ मेरे परदादे के पिताजी ने लगाया था– ‘पलंग पर जो सोएगा, वह चुकेगा !’ सम्भवत:, इसी के प्रसंगश: शिक्षाप्रद उद्धरण जारी है !
रियली, हमारा परिवार कथनी और करनी में सामंजस्य रखने का अब भी प्रयास कर रहे हैं !

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.