पर्यावरण

कोरोना से आमेर महल के गजराजों का जीवन गंभीर संकट में !

कोरोना वायरस मानवप्रजाति पर हमला तो किए ही हैं,अभी एक बहुत ही दुःखद और क्षुब्ध कर देनेवाली खबर जयपुर के आमेर किले से आई है,कि वहाँ कोरोनाजनित संक्रमण से आई पर्यटन में मंदी की वजह से वहाँ आनेवाले पर्यटकों में भारी कमी आई है,वहाँ जहाँ पहले देश-विदेश से प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक आ जाते थे,जिससे वहाँ के 166 हाथी पर्यटकों को अपनी पीठ पर बैठाकर महल की ऊँची चढ़ाई पर चढ़ाते थे,अब पर्यटकों की कमी से बिल्कुल बेरोजगार हो गए हैं,इसके साथ ही इन हाथियों के महावत उनके परिवार व इन हाथियों के चारे की व्यवस्था कराने वाले किसान परिवार जिनकी कुल संख्या लगभग 8 हजार परिवार हैं,इस प्रकार लगभग 40 हजार लोग बिल्कुल बेरोजगार होकर रह गए हैं। आमेर किले के पास बने हाथी गाँव में जहाँ इन हाथियों में से 51 हाथी रहते हैं,काफी दिनों से एकदम बैठे रहने से उनकी पाचन शक्ति बहुत कमजोर हो गई है,उनके पैरों में सूजन आ गई है,इससे पिछले छः महीने में 4 हाथियों की अत्यधिक कमजोरी की वजह से मौत भी हो गई है,जबकि पहले सामान्यतः 4-5 साल में एक हाथी की मौत होती थी। हाथी गाँव के कल्याण समिति के अध्यक्ष के अनुसार ‘आमेर किले पर चढ़ाई करने से सभी हाथियों की उनके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी कसरत हो जाती थी और वे बिल्कुल स्वस्थ्य और फिट-फाट रहते थे,परन्तु चूँकि कोरोना संक्रमण के भय से यहाँ पर्यटकों का आना लगभग बंद है,इसलिए ये हाथी अब बिल्कुल निष्क्रिय हो गए हैं,इसलिए उनके लिए बहुत सी शारीरिक व आर्थिक समस्याएँ पैदा हो गईं हैं। उनके अनुसार एक हाथी पर प्रतिदिन 3000 से 3500 रूपयों तक उनके खानेपीने में खर्च हो जाता है। पहले हाथी कल्याण समिति की तरफ से 600 रूपये प्रति हाथी प्रतिदिन अनुदान मिल जाया करता था,अब हाथी कल्याण समिति की तरफ से एक पैसा भी नहीं मिल रहा है। पहले प्रतिदिन आमेर महल पर जाने के लिए प्रति हाथियों को 4 या 5 ट्रिप मिल जाया करता था,ज्ञातव्य है एक ट्रिप के लिए 1100 रूपये मिलते हैं,परन्तु अब प्रतिदिन मुश्किल से एक ट्रिप भी नहीं मिल पाता,जिससे अब हाथियों के पालकों के लिए हाथियों को पालना बहुत मुश्किल हो गया है। ‘
भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ने इस वर्ष अप्रैल में आमेर किले में पर्यटकों की सवारी कराने वाले इन हाथियों पर एक वैज्ञानिक गहन अध्ययन किया है,इस रिपोर्ट के अनुसार इन 166 हाथियों में घोषित रूप से हाथियों की संख्या को 110 ही बताया जाता है,इन कुल हाथियों में 10 हाथी टीबी की बिमारी से ग्रस्त हैं, जबकि 19 हाथी दृष्टिहीनता और अंधेपन की शिकार हो रहीं हैं,वे ठीक से देख भी नहीं पा रहीं हैं,47 हाथी ऐसे हैं,जिनके रहस्यमय रूप से दाँत,जिन्हें टस्क कहते हैं,जो बहुत ही बहुमूल्य होते हैं,गायब हैं,जिनके गलत इस्तेमाल होने की संभावना है। इस रिपोर्ट के आने के बाद पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स मतलब पेटा की ओर से राजस्थान के वन विभाग और पुरातत्व विभाग को नोटिस भेजकर इन बीमारी से ग्रस्त हाथियों के हाथी की सवारी वाले कृत्य के संचालन पर रोक लगाने की माँग की गई थी, उस समय वन विभाग ने पुरातत्व विभाग को निर्देश दिए थे कि टीबी और अंधेपन से ग्रस्त हाथियों को संचालन से हटाया जाय तथा हाथियों की गर्दन पर अंकुश का प्रयोग न किया जाय,परन्तु अभी तक इन दोनों मामलों में कोई भी कार्यवाही नहीं हुई। पेटा की तरफ से मुकदमा लड़नेवाले अधिवक्ता के अनुसार हाथियों के बारे में व्यवहारिक समस्या ये भी है कि इन हाथियों को जब्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि हाथी अपने महावत के अलावे किसी की बात नहीं मानते,ऐसी स्थिति में आमेर किले की चढ़ाई में अभी भी उन बीमार,टीवी और अंधेपन से ग्रस्त हाथियों से भी हाथी की सवारी पूर्ववत कराई जा रही है।
वस्तुतः दुनियाभर के पर्यटकों को अपनी पीठ पर सैर कराने वाले इन सैकड़ों हाथियों का गाँव,हाथी गाँव बीमारी का घर बन गया है ! इस राज्य के तीन सरकारी विभाग क्रमशः पर्यटन विभाग,आमेर विकास बोर्ड और भारतीय पुरातत्व विभाग हाथियों की सवारी में मोटा पैसा कमाते हैं। हाथी गाँव पर्यटन विभाग के अधीन है,परन्तु इसकी देखरेख की जिम्मेदारी आमेर विकास बोर्ड के पास है,इससे हाथियों की देख-रेख,साफ-सफाई,भोजन की व्यवस्था और उनकी स्वास्थ्य आदि की देखभाल कौन विभाग करेगा ?यही निश्चित नहीं हो पा रहा है ! लेकिन इन सभी सरकारी खींचतान व अव्यवस्थाओं की शिकार इस धरती के सबसे बड़े,समझदार,बुद्धिमान और विलुप्तिकरण के कगार पर खड़े इस निरीह जीव को अपने जीवन को समाप्त करके भुगतना पड़ रहा है। इसलिए हम केन्द्र और राजस्थान की सरकारों के कर्णधारों का ध्यान इन संकटग्रस्त हाथियों के जीवन को बचाने के लिए त्वरित कल्याणकारी कार्यवाही करने का अनुनय करते हैं,ताकि धरती के इस बहुमूल्य जीव को भयंकरतम् बिमारियों से संक्रमित होकर व भूख से तड़प-तड़पकर मौत के मुँह में जाने से समय रहते इन्हें बचाया जा सके।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल .nirmalkumarsharma3@gmail.com