कविता

जीवन क्या है

जीवन क्या है
यह हो जाए
वोह हो जाए
यह मिल जाएं
वो मिल जाएं
यह सब अभिलाषा ही तो जीवन है
उठ खड़ी नित्य एक अभिलाषा
जीवन को गति देती है
थक हार रात सो जाएं
फिर सुबह उठ
अभिलाषा पूर्ण करने में लग जाएं
कब सुबह हुई
कब रात हुई
इस अभिलाषा में
पता नहीं लग पाए
कभी पूर्ण तो
कभी अपूर्ण यह रह जाए
सफर जिंदगानी का
यूं ही चलता रहता है
कभी निराश होते
कभी खुश होते
दौड़ते रहते हैं
अभिलाषाओं के पीछे
जीवन का यही सत्य है
जीवन है एक अभिलाषा

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020