कविता

सुबह का भूला

सुबह का भूला,
अगर शाम तक अपनी,
गलती मान जाता है।
जिंदगी की अहमियत,
वक्त की कद्र,
अपनों का दर्द,
दुआओं का असर,
पहचान जाता है।
उसकी भूल को,
शाम तक,
हर कोई,
भूल जाता है।
सुबह का भूला
अगर शाम तक
जिंदगी की कद्रों -कीमतों को,
पहचान जाता है।
प्यार की,
कोई कीमत नही,
यह जान जाता है।
उसकी भूल को,
शाम तक,
 हर कोई भूल जाता है।
सुबह का भूला,
अगर शाम तक भी……
नही समझ पाता है।
अपने साथ ,
 कई अपनों की,
भावनाओं को ठेस जाता है।
 फिर वो जिंदगी भर,
 नहीं समझ पाता है।
 —  प्रीति शर्मा “असीम”

प्रीति शर्मा असीम

नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश Email- aditichinu80@gmail.com