कविता

कविता

सच ही कहा गया है कि
नारी नरम है न लोहे से कम है
पुरुष है स्याही तो वो भी कलम है
कैसे भी देखो तो
पुरुष और नारी
का स्थान बराबरी का है
पर ये अपने आप को
ऊचां दिखाने वाला
पुरुषत्व अहंकार मद
कहा से है
क्या एक पुरुष की
यही है विकसित सोच
धिक्कार है ऐसे पुरुषत्व
पर जिसके दिल में
नारी का कोई स्थान न हो
धिक्कार है ऐसे पौरुष पर
जिसे पुरुष होने का
अहंकार है
जो नारी अपने घर को
मंदिर जैसे देखते हुए
बच्चों को परिवारिश करके
बाहर का काम करती
फिर भी शोषण का
शिकार होती
है किसी पुरुष में हिम्मत
जो करके दिखा दे
इन कामो को
अरे मूर्ख अब भी समझो
करलो सम्मान नारी का
बनाओ भाग अर्धांगिनी का
जहा दोनों की प्राथमिकता हो
वो घर हसते मुस्कुराते
फूलों की तरह है
जहा दो दिलों का मेल है
वहीं घर मंदिर है
वहीं घर स्वर्ग है
विजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।