कविता

पुराना ज़माना

बहुत प्यारा था,पुराना ज़माना
सब बातें थीं प्यारी,समां था सुहाना

दद्दा और अम्मा,बाई और कक्का
चना और चबेना,ज्वार और मक्का
खेत और खलिहान,होला और भुट्टा
सदा घूमा करते थे,हम सारे छुट्टा
नाले और बावड़ी,तालाब और पोखर
नहाते थे सारे,हम जी भरकर
मकान थे कच्चे,रिश्ते पर पक्के
सम्बंधों को कभी भी,लगते न थे धक्के
घर थे छोटे पर दिल थे बड़े
धन नहीं,पर सब अमीरी में थे जड़े
आम और इमली,बाग और बगीचा
रामू के हल को बैलों ने खींचा
जुम्मन और अलगू,राधा और रज़िया
फुल्ला की दुकान पे खाते थे भजिया
पतंगों की मस्ती,कबड्डी का आलम
कंचों का खेला,कौंड़ियों का मौसम
चक्की और चूल्हे,सुंदर पनिहारिन
फूल खिलते थे क्यारिन–क्यारिन
गिल्ली-डंडा के जलवे,गोटों की दुनिया
होली-दीवाली,रँग-पटाखों की महिमा
हल-बैलगाड़ी,गायें और भैंसे
नज़ारे थे भैया कैसे-कैसे
अलाव-चौपालें,आल्हा की तान
किस्से-कहानी,पीपल का मान
दादा और दादी,नाना और नानी
मामा और मौसी,सब बातें सुहानी
हनुमंत बब्बा की दया की बातें
प्रेम,अपनापन,भाईचारा,नहीं घातें
पुराने ज़माने की बातें,मानो सौगातें
पेड़ों की छाया,तारों की रातें
लकड़ी पगा खाना,स्वाद निराला
गांव का मुखिया,गांव का लाला
बरफ की चुस्की,बरफ का गोला
स्कूल के माटसाब,किताबों का झोला
ना बैर,न लड़ाई,सब इक-दूजे को भाते
पड़ौसी पड़ौसी को बेहद सुहाते
रिश्ता निभाने को हर इक था तत्पर
तारों को गिनते थे,चढ़कर छत पर
सचमुच में न्यारा था पुराना ज़माना
बहुत प्यारा था पुराना ज़माना।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com