कविता

नव वर्ष

ज्यो तरु की डलिया,कपिल जने नवीन हो
आए नव वर्ष त्यों, जैसे मेघ कुलीन हो
गुजर गए वर्ष नमी अँधेरों की
प्रसन्नता से छलके, लबों पर जैसे प्रवीण हो!!
ये बादल की लहरें भी कुछ कह रही
वसंत का आगमन, कोयल झूम कर गा रही हो
गुरुजन दे हमें आशीर्वाद यहाँ सच्चा
हर घर मे माँ सरदे का वास हो!!
कोपले है अब कुछ नई निकले
 पुष्पित फलित भी हर डाल हो
इस जगत मे नव निड़ का हो निर्माण
गरीब, उजड़ो का भी उद्धार हो!!
नव वर्ष, नव दृष्टि और नव योजना हो
ना बेघर, निर्वस्त्र, सपने सभी के साकार हो
द्वेष की दुनिया को जड़ से मिटाओ
बस नित, प्रेम का ही प्रसार हो!!
बैर भाव सभी का दूर हो, दूर रहे सब का कष्ट
शांति, सुधा विश्व मे, ज़ब आतंकी का सर्वनाश हो
उठो!और मिटा दो सारे मन के क्रोध
जो ह्रदय मे दबी छिपी अभिलाषा हो!!
कदम हमेशा अडिग रखना तुम
पुलकित होंगे मन, ज़ब मंजिल पर जोर हो
दुनिया के इस रंगमंच मे, गुजरी बात है पुरानी
स्वागत है नव वर्ष का, नित नव काज हो!!
— राज कुमारी

राज कुमारी

गोड्डा, झारखण्ड