मुक्तक/दोहा

संवेदना

जीवन में संवेदना,लाती है मधुमास।
अपनाकर संवेदना,मानव बनता ख़ास।।

संवेदित आचार तो,है करुणा का रूप।।
जिससे खिलती चाँदनी,बिखरे उजली धूप।।

संवेदित सुविचार से,मानव बने उदार।
द्वेष,कपट सब दूर हों,बिखरे नित उपकार।।

अंतर्मन में नम्रता,अधरों पर मृदु बोल।
करती है संवेदना,जीवन को अनमोल।।

रीति,नीति हमसे कहें,बनना सद् इनसान।
आएगी संवेदना,पाए जीवन मान।।

हो संवेदित पौंछ दो,आँसू,दो मुस्कान।
बिन उदारता ज़िन्दगी,नहिं पाती है आन।।

है विशेष संवेदना,जो लाती उजियार।
सच में बिन औदार्य के,फैले नित अँधियार।।

मानवता-उद्घोष है,रखें दया का भाव।
संवेदित हो हम रखें,परसेवा का ताव।।

जहाँ पले संवेदना,वहाँ रहें भगवान।
संवेदित इनसान का,होता नित यशगान।।

अगर संग संवेदना,तो समझो उपहार।
मानव-जीवन को मिले, कदम-कदम पर सार।।

— प्रो. शरदनारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com