हास्य व्यंग्य

आंदोलनजीवी बनाम चंदाजीवी

सोफे पर पसरे-पसरे दुखी आत्मा ने सोचा,देश में नेता तो कई हैं,मगर मजेदार युवा नेता तो एक ही हैं। ऐसे नामचीन नेता अगर कहते हैं कि मुझे बजट पर बात नहीं करनी, मुझे तो चीन पर बात करनी है,तो इससे उनका पड़ोसी प्रेम झलकता है। इन्हें चीन की सेना ज्यादा मजबूत नज़र आती है, इसका बस इतना अर्थ है कि पड़ोसी की बीबी इनको बहुत सुंदर दिखती है। प्रधानसेवक जी ने भारत माता को चीर दिया है ,इसकी बेसकीमती जमीन चीन को गिफ्ट कर दी है।मतलब यह है कि इनको पढ़ने लिखने में आज भी मन नहीं लगताऔर ऊपर से आरोप लगाना भी इन्हें ठीक से नहीं आता।साथ ही ये भुलक्कड़ भी हैं,आरोप लगाते समय ये भूल जाते हैं कि उन्हीं के परिवार के पूर्व प्रधानमंत्री जी ने चीन को भारत की तैतालीस हजार वर्ग किलोमीटर जमीन गिफ्ट की हुई है।वे यह भी कहते हैं, मुझे किसानों पर बात करनी है, क्योंकि जुमलेबाज प्रधानमंत्री देश के किसानों को सिर्फ गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और आत्महत्या दे रहे हैं। मैं किसानों के पक्ष में खड़ा हूँ।इसका अर्थ बस इतना है कि इन्हें ठीक से खड़ा होना अभी भी नहीं आता है, ये हमेशा मां के सहारे ही खड़े रहेंगे। इन्होंने कांग्रेस को अपने बयानों, निर्णयों और हरकतों से काफी कमजोर कर दिया है।दुखी आत्मा ने आगे सोचा,अब तो कोरोना , किसान आंदोलन और जाड़ा भी काफी कमजोर पड़ गया है।वैक्सिन आ जाने के बाद अब कोविड से लोग डर नहीं रहे ।कोरोना के उफ़ान के समय तो सभी को ऐसा लगने लगा था, दुनिया अब गयी की तब गयी,कम से कम मैं तो गया ही गया।उसी तरह किसान आंदोलन के प्रारंभिक उफ़ान को देखकर भी सारे देश को लगने लगा था,यह सरकार अब गयी कि तब गयी।सारी सहानुभूति किसान बटोर रहे थे और सारी आलोचना की हिस्सेदार केंद्र सरकार हो रही थी।ढेर सारे कवि लेखक पत्रकार किसानों के समर्थन में कविताएं,लेख, रिपोर्ताज लिखने लगे थे। चैनल रात-दिन आंदोलन को बल प्रदान करने वाले धांसू समाचार चलाने लगे थे।ट्वीटर, फेसबुक और ह्वाट्स ऐप वीर अलग ही पैंतरा भांज रहे थे।यह सब देख आंदोलनकारी अपने समर्थकों को समझाने लगे थे कि विश्व बिरादरी का ऐसा दबाव है कि कभी भी प्रधानमंत्री त्यागपत्र दे सकते हैं।पर बहुत जल्दी ही देश को समझ में आ गया किसान आंदोलन स्वाभाविक और स्वतःस्फूर्त नहीं है,बल्कि प्रायोजित है और इसके प्रायोजक विदेश में बैठे खास विचारधारा के धनजुटाऊ और धनखर्चु हैं। गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले के ऊपर खास तत्व भड़काऊ नारे लगाते रहे, पुलिस पर हमला करते रहे। तिरंगे को उतारकर उसकी जगह अपना झंडा लगा सरकार को चैलेंज करते रहे। सरकार इनके उकसावे में नहीं आयी। गोलियां नहीं चली,लाठी चार्ज नहीं हुए।नतीजतन प्रधानमंत्री जी को ‘कर्नल डायर’ सिद्ध करने का अंतरर्राष्ट्रीय षड़यंत्र टांय-टांय फिस्स हो गया। लालकिला जलियांवाला बाग बनने से बच गया।
और अब तो संसद में भी प्रधानमंत्री जी ने साफ़-साफ़ कहा है कि वे किसानों का पूरा समर्थन करते हैं।आंदोलन करना किसानों का जनतांत्रिक अधिकार है। सरकार कृषि सुधार कानूनों में हर वो संशोधन परिवर्तन करने को तैयार हैं जो किसानों के हित में है।मगर किसान बताएं तो, ये कानून किसान विरोधी कैसे हैं?इस कानून में किसान हित के खिलाफ काला कहाँ है? कहां ऐसा कुछ लिखा है,जिसका अर्थ है कि उद्योगपति किसानों की जमीन हड़प लेंगे? जवाब न किसान आंदोलनकारियों के पास है और न इनका समर्थन कर रहे विपक्ष के पास।
इतना ही नहीं प्रधानमंत्री जी ने अपने मौलिक चिंतन का परिचय देते हुए,कुछ सवाल भी खड़े किए हैं,जेल में बंद राष्ट्रविरोधी ताकतों और दंगों के अपराधियों को छोड़ने की मांग करना किसान आंदोलन कैसे हो गया? इतना ही नहीं,इस किसान आंदोलन को हवा दे रहे लोकतंत्र समर्थक गैंग को आंदोलनजीवी का नाम देकर इन्होंने मानों बम ब्लास्ट कर दिया है। गज़ब का व्यंग्य है यह।ऐसा व्यंग्यबाण तो आलादर्जे का व्यंग्यकार ही चला सकता है। इन्होंने तो एक तरह से लोकतंत्र की पिच पर आंदोलन का खेल खेलने वाले एक्टिविस्टों और नेताओं का विकेट ही डाउन कर दिया है। अरे भाई!विपक्ष अपने को आंदोलनकारी समझता है, किसानों का हितैषी और समर्थक समझता है, इतना ही नहीं वह तो आंदोलन के दौरान हार्ट-अटैक कोरोना और दुर्घटना में मरने वालों को शहीद-ए-आजम के दर्जे का शहीद समझता है। और प्रधानमंत्री जी हैं कि उन्हें “आंदोलनजीवी” कहकर अपमानित कर रहे हैं।यह तो लोकतंत्र का भी अपमान हो गया। लोकतंत्र की खूबसूरती पर भद्दा दाग लगा दिया इन्होंने।तो क्यों न ये विरोधी तिलमिला जाएं और प्रधानमंत्री जी को सत्ताजीवी,दंगाजीवी,चंदाजीवी कह-कहकर गुस्सा निकालें ?
दुखी आत्मा का ध्यान अयोध्या के राम मंदिर निर्माण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जमा किये जा रहे चंदे की ओर भी गया। उन्होंने मन ही मन कहा,वाह गज़ब की चाल चली है राष्ट्रवादियों ने। विरोधियों का ध्यान किसान आंदोलन,बंगाल विधानसभा चुनाव और चीन की ओर लगाकर खुद बड़े आराम से इस कोरोनाकाल की मंदी में भी अरबों-अरब चंदा वसूल रहे हैं।
तभी श्रीमती जी ने दुखी आत्मा का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए कहा,”महाप्रभु ! कहां खोए हुए हैं आप, चलिए एक मजेदार ह्वाट्स ऐप मैसेज दिखा आपको ताजादम करती हूं।देखिए इसमें लिखा है, कांग्रेस महासचिव श्रीमती प्रियंका गांधी ने संगम तट पर मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान कर सूर्य को जल अर्पित किया और देश की खुशहाली तथा तरक्की की कामना की।”और फिर संलग्न तस्वीरों की ओर इशारा करते हुए श्रीमती जी ने कहा “देखिए स्नान करते और जल अर्पित करते प्रियंका गांधी की कई खूबसूरत तस्वीरें भी शेयर की है कांग्रेस ने।”
दुखी आत्मा ने तस्वीर देखते हुए कहा “अरे वाह,सच कह रही हो तुम ” फिर उन्होंने आगे जोड़ा “इसी से पता चलता है, जुमलेबाज के नाम से प्रसिद्ध नेता ने कांग्रेस की कितनी बुरी हालत कर दी है। पहले कांग्रेस इन गांधियों की इफ्तार पार्टी वाली फोटो जारी करती थी।अब वह दिन दूर नहीं जब कांग्रेस प्रियंका गांधी की तीज-त्योहार मनाने और राहुल गांधी को राखी बांधने वाली तस्वीरें भी जारी करेगी।मजा आ गया, तुमने तो आज के दिन को वेलेंटाइन डे कर दिया। चलो इसी खुशी में साथ-साथ चाय पीते हैं।”
श्रीमती जी ने टोंट मारा, ” तुम्हारे समर्थक तुम्हारे वेलेंटाइन डे मनाने के बारे में सुन कहीं तुम्हारी ऐसी-तैसी न कर दें।”यह सुनते ही दुखी आत्मा एक बार फिर से दुखी रहने वाले स्थायी भाव में आ गये, और श्रीमती जी मुस्कराने लगीं।

— अजय कुमार प्रजापति

अजय कुमार प्रजापति

साहित्य संपादक, इस्पात भारती मासिक पत्रिका फोन नंबर-९४३१७६४९२१/९३७३५५६४८६ पता- ए६/५७, आनंद विहार पोस्ट- टेल्को वर्क्स जमशेदपुर , ८३१००४,झारखंड