गीत/नवगीत

शीर्षक :- शुद्ध काव्य की खोज

शुद्ध काव्य की क्या खोज करूं मैं
खुद जीवन बना काव्य मेरा ।

पंक्तियां तैरती-डुबती सी हैं
धूमिल सा यह रास्ता है मेरा ।
गमों का सांया भंवर बन कर
तैरते हुए उन सभी अक्षरो को
और किंचित उन शब्दों को
अपने अन्दर समेट कर
अथाह गहराई में ले जाती ।

शुद्ध काव्य की क्या खोज करूं मैं
खुद जीवन बना काव्य मेरा ।

टुटे हुए शब्दों को बटोर कर
माना बनाती हूंँ मैं कविता
कहां मिलेगा इनको इनका
उतना स्नेह और आदर ।
जो इनको मिलना है होता

शुद्ध काव्य की क्या खोज करूं मैं
खुद जीवन बना काव्य मेरा ।

सरोबार पन रस वाक्यों को
कौन होंठो से लगाऐगा ।
पानी से बिखरे, भीगे शब्दों का
भला आस्वादन कौन करेगा ?
इनका स्वाद मानो है फीका ।

शुद्ध काव्य की क्या खोज करूं मैं
खुद जीवन बना काव्य मेरा ।

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)