कविता

जरा

वक्त की आग में तप ने दो जरा
अभी उत्पन्न हुआ हूं थोड़ा सा निखरने दो जरा
युद्ध के मैदान में मैं भी आऊंगा शमशीर लेकर
मुझे युद्ध कौशल में सवरने दो जरा

ख्वाब है छोटा सा अंदर पलने दो जरा
दोबारा आएगा सूरज अब ढलने दो जरा
दुश्मन के पैंतरे काम नहीं आएंगे अब
मुझे इस प्रतिशोध में जलने दो जरा

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733