संस्मरण

जन्मदिन @ कर्मदिन

गायत्री बाल संस्कार शाला रावतभाटा में एक छात्रा भूमिका ने एक दिन मुझसे
प्रश्न किया कि दिलीप अंकल आप प्रत्येक रविवार को समय से हमें पढ़ाने आ जाते
हैं। कभी अपने गांव जाने के लिए अवकाश भी नहीं लेते। मैने कहा मेरा कोई गांव
नहीं है। बहुत समय से रावतभाटा में ही रह रहा हूं। अब यही मेरा गांव है। आप
कितने समय से यहां रह रहे हैं। 23 जनवरी 1970 से। 51 वर्ष हो चुके यहां रहते
हुए। इसका अर्थ है कि 9 वर्ष बाद आप परमाणु बिजली घर से रिटायर हो जायेंगे।
रिटायर तो 13 वर्ष पूर्व 31 दिसंबर 2007 को ही हो गया था। मेरा जन्मदिन 26
दिसंबर 1947 का है। 23 जनवरी 1970 को तो मेरा कर्मदिन है। उस दिन मैंने
रावतभाटा परमाणु बिजलीघर में सर्विस ज्वॉइन की थी। ओह आप 51 वर्ष के नहीं
परंतु 73 वर्ष के हैं। ग्रेट अंकल। इस उम्र में भी इतनी ऊर्जा हिम्मत शक्ति
अच्छा स्वास्थ्य। विश्वास नहीं हो रहा। अच्छा अंकल पर आपका जहां जन्म हुआ वह
तो आपका गांव कहलाया ही जायेगा ना। वहां अब आपके परिवार का कोई तो होगा ही।
उनसे मिलने हवा पानी बदलने तो जा ही सकते हैं ना। भूमिका बेटी मेरे दादाजी
झालरापाटन में रहते थे। उनका अपना घर भी वहां था। मेरे पिताजी पोस्टमास्टर थे।
ट्रांसफर होते रहते थे। मेरा जन्म प्रमाण पत्र नगर पालिका झालरापाटन का ही
बाबूजी ने बनवाया था। मेरी दस वर्षों की स्कूल शिक्षा छ जगह हुई क्योंकि मेरे
बाबूजी के ट्रांसफर होते रहते थे। मेरे दादाजी के सामने ही उनका झालरापाटन का
घर बेच दिया गया था। अब झालरापाटन में न कोई घर है न कोई रिश्तेदार। इसलिए
झालरापाटन हमेशा के लिए डिलीट ही हो गया। मेरे पिताजी को हमेशा पोस्ट ऑफिस का
सरकारी क्वार्टर मिलता था। 1978 में 58 वर्ष की उम्र में मेरे पिताजी कोटा
श्रीरामनगर से रिटायर हुए थे। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उस समय तक हम पांच
भाई बहनों में से दो की ही शादी हो पाई थी। तीन भाई बहन की शादी की जिम्मेदारी
पिताजी की प्राथमिकता थी। इस समय सैलरी भी बहुत कम हुआ करती थी और संतान अधिक
होती थीं आजकल सैलरी अच्छी है एवम संतान मात्र एक अथवा दो। इसलिए मेरे पापा
अपना कोई घर नहीं बनवा सके। कोटा में किराए के मकान में ही रहे । बचे हुए मेरे
तीन भाई बहन के विवाह कर 16 फरवरी 1985 को जीवन से मुक्त ही गए। उनके निधन के
पश्चात मेरी माता अम्मा अधिकांश समय मेरे साथ मेरी कर्मभूमि रावतभाटा में ही
रहीं। इसलिए बाबूजी के जाने के बाद कोटा भी आना जाना छूट ही गया था। परमाणु
बिजली घर की कॉलोनी में अपनी अम्मा जी साथ ही मेरा परिवार रहा। 15 फरवरी 2010
को अम्मा भी जीवन से मुक्त हो गई। इसलिए रावतभाटा के कर्मस्थान पर ही अपनी
इकलौती बेटी के घर में एक कमरा ही मेरा वर्तमान निवास है। जीवन संगिनी भी बीच
में ही साथ छोड़कर 14 नवंबर 2003 को जीवन से मुक्त ही गईं। इसलिए न कोई गांव
है। जन्मस्थान पर भी अब कोई नही है। बाबूजी ने कोई मकान बनवाया ही नहीं था।
इसलिए बस अम्मा की सेवा करने की जिम्मेदारी मुझे देकर मुक्त हो गए। मेरे होते
हुए अम्मा को कभी अपने घर की जरूरत ही नहीं थी। अम्मा बाबूजी के जीवन का
लक्ष्य था कि बना दीजिए अपनी संतान को एक अच्छा इंसान। जरूरत नहीं कि फिर हो
अपना कोई मकान। सेवा तो नहीं कर पाया बस अम्मा के साथ रहे में मैं मेरी पत्नी
एवम हमारी इकलौती संतान बेटी। कुछ समय के लिए मेरी अम्मा मेरी बहन के यहां कुछ
समय अपने छोटे बेटे के साथ एवम कुछ समय मेरी एक धर्म बहन के यहां रही लेकिन
उनके जीवन के अंतिम बीस दिनों की सेवा का अवसर अम्मा ने मुझे एवम मेरी बेटी को
ही दिया। उनके जाने के बाद गांव का अब कोई प्रश्न नहीं उठता। मेरी बेटी का
मायका तो उसकी मम्मी के जाने के साथ ही नहीं रहा। उसके पीहर में अब मैं एक
लास्ट पीस बचा हुआ हूं। बेटी से मुझे अलग रहने की अनुमति नहीं है। मेरी बेटी
मेरी अंतिम सांस तक अपने परिवार के साथ ही रखकर तन मन से मेरी सेवा करेगी। ऐसा
उसने कहा है एवम समाज परिवार रिश्तेदारों फ्रेंड्स को करके भी बता रही है।
कथनी को करनी में कर समाज की एक संदेश दे रही है। इसलिए मुझे स्वयं के लिए
किसी अलग मकान बनाने का भी कोई कारण नहीं था। इस प्रकार मेरी बेटी का भी कोई
गांव नही है। जो कुछ है बाद रावतभाटा ही है हम दोनों पिता पुत्री के लिए। अब
बेटी ने रावतभाटा में ही अपना घर बना लिया है एवम अपने ही
घर में अपने पापा के लिए एक अलग कमरा भी। वर्तमान में मेरे पास कोई मकान दुकान
अचल संपत्ति प्लॉट कुछ भी नहीं है। भूमिका बेटी तुम्हारी मिली दीदी के घर में
मेरा वर्तमान निवास स्थान ही मेरा गांव कहा जा सकता है। जीवन संध्या है बेटी।
जीवन का सूर्यास्त भी निकट आ ही रहा है। क्या गांव क्या मकान। संसार हम सभी के
लिए एक धर्मशाला भर है। अमृत पीकर कोई नही आया। प्रत्येक प्राणी को खाली हाथ
जाना है। गांव मकान प्लॉट फोर बीएचके फ्लैट महल बैंक लॉकर शेयर म्यूचुअल
फंड्स एफडी सब यहीं रह जायेगा। खाली हाथ जाना है बेटी। भूमिका की आंखों में आंसू
थे। अंतिम प्रश्न दिलीप अंकल मेरा है कि आप अगली 26 दिसंबर को  75  वें वर्ष
में प्रवेश करेंगे। कुछ परेशानियां तो आपकी बढ़ती उम्र के साथ दिख भी रही हैं।
पर अंकल इस उम्र में आपने अपने आप की कैसे इतना स्वस्थ रखा हुआ है। मैं भीगी
पलकों से भी मुस्करा पड़ा। भूमिका मुझे भी नहीं पता। तबियत खराब होने पर
हॉस्पिटल चला जाता हूं। डॉक्टर की दवा खा लेता हूं बस। इस समय इससे अधिक मुझे
कुछ नहीं पता। हालांकि तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर खोजने की कोशिश करूंगा एवम
अगले रविवार की संस्कार शाला में तुम्हें और सभी विद्यार्थियों को कहूंगा। अब
राष्ट्रीय गान कर आज की पाठशाला का समापन करते हैं। अगले संडे को मिलेंगे।
बाय।
— दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी