गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – ले गया था

वो आंखों का भी मंज़र ले गया था
मेरा आंसू समंदर ले गया था

कभी उसकी ज़मींदारी रही थी
गया तो सिर्फ बिस्तर ले गया था

ये सच है जीत ली थी उसने दुनिया
मगर फिर क्या सिकंदर ले गया था

अजब उल्फत उसे महबूब से थी
लगा जो सर पे पत्थर ले गया था

बंटी लोगों में सारी योजनाएं
बचा जो थोड़ा अफसर ले गया था

मैं मरता भी भला कैसे यहां पर
मेरा हर ज़हर शंकर ले गया था

मेरी रोटी को दो हिस्सों में करके
बचाकर सारा बंदर ले गया था

— डॉ. जियाउर रहमान जाफरी

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी

जन्म -मुज़फ़रा, बेगूसराय -हिन्दी, अंग्रेजी, शिक्षा शास्त्र में एम ए, बी एड, और परकारिता, हिन्दी से पीएच डी -खुले दरीचे की खुशबू खुशबू छू कर आई है परवीन शाकिर की शायरी चाँद हमारी मुट्ठी में है मैं आपी से नहीं बोलती लड़की तब हंसती है (संपादन ) .......आदि पुस्तकें प्रकाशित -हिन्दी, उर्दू, और मैथिली की पत्र पत्रिकाओं में नियमित लेखन -बिहार सरकार का आपदा प्रबंधन लेखन पुरुस्कार प्राप्त -आकाशवाणी और टीवी चैनल्स में नियमित प्रसारण -फिलवक़्त -बिहार सरकार में अध्यापन संपर्क -माफ़ी, अस्थावां, नालंदा, बिहार 8031071 मो- 9934847941, 6205254255