कवितापद्य साहित्य

कोरोना

1.
ओ कोरोना,
है कैसा व्यापारी तू
लाशों का करता व्यापार तू
और कितना रुलाएगा
कब तक यूंँ तड़पाएगा
हिम्मत हार गया संसार
नतमस्तक सारा संसार
लाशों से ख़ज़ाना तूने भर लिया
हर मौत का इल्ज़ाम तूने ले लिया
पर यम भी अब घबरा रहा
बार-बार समझा रहा –
तेरे ख़ज़ाने के लिए बचा न स्थान
मरघट बन गया स्वर्ग का धाम
ओ कोरोना,
ढूँढ़ कोई दूजा संसार।
2.
ओ विषाणु,
सुन, तुझे रक्त चाहिए
आ, आकर मुझे ले चल
मैं रावण-सी बन जाती हूँ
हर एक साँस मिटने पर
ढेरों बदन बन उग जाऊँगी
तू अपनी क्षुधा मिटाते रहना
पर विनती है
जीवन वापस दे उन्हें
जिन्हें तू ले गया छीनकर
मैं तैयार हूँ
आ मुझे ले चल।
3.
ओ नरभक्षी,
हर मन श्मशान बनता जा रहा है
पर तू शान से भोग करता जा रहा है
कैसे न काँपते हैं तेरे हाथ
जब एक-एक साँस के लिए
तुझसे मिन्नत करते हैं करोड़ों हाथ
और तेरा खूनी पंजा
लोगों को तड़पाकर
नोचते-खसोटते हुए
अपने मुँह का ग्रास बनाता है
अब बहुत भोग लगाया तूने
जा, सदा के लिए अब जा
अंतरिक्ष में विलीन हो जा।
4.
ओ रक्त पिपासु,
तेरे खूनी पंजे ने
हर मन हर घर पर
चिपकाये हैं इश्तेहार –
”तुझे जो भायेगा तू ले जाएगा
दीप, शंख, हवन, गो कोरोना गो से
तू नहीं डरता
सब तरफ़ लाल रक्त बहाएगा”
रोते, चीखते, काँपते, छटपटाते लोग
तुझे बहुत भाते हैं
पर अब तो रहम कर
जब कोई न होगा
तू किसका भोग लगाएगा।
5.
ओ पिशाच,
अब दया कर
चला जा तू अपने घर
हम सब हार गए
तेरी शक्ति मान गए
ज़ख्म दिए तूने गहरे सबको
भला कौन बचा, तू खोजे जिसको
घर-घर में मातम पसरा
कौन ताके किसका असरा
जा तू चला जा
अब कभी न आना
बची-खुची आधी-अधूरी दुनिया से
हम काम चला लेंगे
जिनको खोया उनकी यादों में
जीवन बिता लेंगे।
– जेन्नी शबनम (30. 4. 2021)
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