कविता

मिट्टी

*मिट्टी*
सार है व्यवहार है संसार है मिट्टी |
जग रचा जिससे वही आधार है मिट्टी |

लहलहाती है फसल गुल मुस्कराते हैं –
अन्न उगता है जहा गुलज़ार है मिट्टी |

शून्य बसता है जहा वीरान हो धरती –
सब उसे बंजर कहे बेधार है मिट्टी |

पेट को रोटी मिले घर में उजाला हो –
दीप मालाएँ सजे आकार है मिट्टी |

हों सभी त्योहार पूरे पूर्ण हो सब काम-
देव प्रतिमाएँ गढे साकार है मिट्टी |

आदमी की आदमीयत का मिले आभास –
व्यक्ति का व्यक्तित्व मूलाधार है मिट्टी |

शान से जीना सिखाए शान से मिटना-
धर्म और ईमान है उद्धार है मिट्टी |

देश का सम्मान है यह देश का गौरव –
ईश की आराधना है प्यार है मिट्टी |

पंच तत्वों से हुआ निर्मित हमारा तन –
मैं करूँ वन्दन तेरा उपकार है मिट्टी |
©®मंजूषाश्रीवास्तव”मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016