गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मचलना रूठना उनका मनाना अच्छा लगता है |
मोहब्बत से मोहब्बत को निभाना अच्छा लगता है |

मचलते ख्वाब आंखों में सितारे जगमगाते हैं –
जो हों अरमान पूरे मुस्कुराना अच्छा लगता है |

निगाहों ने निगाहों से कहा जो कुछ सुना हमने –
निगाहें नाज़ से पलकें झुकाना अच्छा लगता है |

चलाकर तीर नज़रों से हया से मुस्कुरादेना –
नज़र की शोखियों का ये निशाना अच्छा लगता है |

बड़ी मायूस सी थी ज़िन्दगी जब संग नही थे तुम –
तेरे आने से ये मौसम सुहाना अच्छा लगता है |

तेरे आने से महफ़िल सज गयी रौशन हुई दुनिया –
बहर पर गीत गज़ले गुनगुनाना अच्छा लगता है |

मेरे दिल पर तुम्हारा नाम लिखा है बहुत गहरा –
तुम्हारे नाम की बिंदिया लगाना अच्छा लगता है |

खजाने से नहीं कम है तुम्हारे प्यार की दौलत –
तुम्हारे प्यार में जीवन रंगाना अच्छा लगता है |

नहीं परवाह कोई साथ हो जब तुम मेरे हमदम –
तुम्हारी ही बदौलत ये जमाना अच्छा लगता है |

मेरी हर सांस हर धड़कन तुम्हारा नाम लेती है –
तुम्हारे नाम की मेंहदी लगाना अच्छा लगता है |
मंजूषा श्रीवास्तव”मृदुल”

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016