कविता

मानवता की मशाल

नफरत से नित दूर रहें
और लिखें प्रीत के गीत।
मानवता की मशाल थामकर
बनें सभी के मीत।
द्वेष भाव कभी भी मन के
आलय में ना आये।
विपदाओं में भी हम तो नित
ऐसे ही मुस्काये।
मन के हारे हार है मिलती
मन के जीते जीत।
मानवता की मशाल थामकर
बनें सभी के मीत।
खांई मिटाकर भेदभाव की
बांधे प्रेम की डोर।
तिमिर मिटेगा फिर जीवन का
होगा सुख का भोर।
दुखियों के दुख को सदा मिटाना
कर्म है परम् पुनीत।
मानवता की मशाल थामकर
बनें सभी के मीत।
मानवता का पथ है उन्नत
सबको इसमें बढ़ना होगा।
वसुधैव कुटुम्बकम के स्वप्न को
मिलकर अब गढ़ना होगा।
अशोक सतत इस पथ पर बढ़ना
तपन हो चाहे शीत।
मानवता की मशाल थामकर
बनें सभी के मीत।
— अशोक प्रियदर्शी

अशोक प्रियदर्शी

चित्रकूट-उत्तर प्रदेश मो0 6393574894