कविता

कविता

हसीनों की महफ़िल से चुरा लाया।
दिल में तुझे सदा के लिए बैठाया।।
तुमने भी खुशी-खुशी समर्पित किया।
न घबराई,न ही प्रतिकार कभी किया।।
नहीं कभी मैंने तुम्हें जंजीरों से बांधा।
न तो कभी भी क़फ़स में रक्खा।।
जीवनसाथी बन जीवन्त पर चलते रहे।
संघर्षों को हंस-हंस कर पार‌ करते रहे।।
मुद्दत बाद एक छोटा सा आशियाना बनाया।
रंग-बिरंगे सपनों से उसे सजाया।।
सुखी जीवन पर न जाने नज़र लगी किसकी।
आंधी एक ऐसी आई क्षण भर में आशियाना भसकी।।
विलग कर मुझ से तुम्हें ले मृत्यु ले गया।
रोकना चाहा कर भी मैं नहीं रोक पाया।।
जिस्म तो मेरा मेरे पास है जान ले गया।
ग़म की दरिया में मुझे अचानक गिरा गया।।
— डा. मंजु लता

डॉ. मंजु लता Noida

मैं इलाहाबाद में रहती हूं।मेरी शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई है। इतिहास, समाजशास्त्र,एवं शिक्षा शास्त्र में परास्नातक और शिक्षा शास्त्र में डाक्ट्रेट भी किया है।कुछ वर्षों तक डिग्री कालेजों में अध्यापन भी किया। साहित्य में रूचि हमेशा से रही है। प्रारम्भिक वर्षों में काशवाणी,पटना से कहानी बोला करती थी ।छिट फुट, यदा कदा मैगज़ीन में कहानी प्रकाशित होती रही। काफी समय गुजर गया।बीच में लेखन कार्य अवरूद्ध रहा।इन दिनों मैं विभिन्न सामाजिक- साहित्यिक समूहों से जुड़ी हूं। मनरभ एन.जी.ओ. इलाहाबाद की अध्यक्षा हूं। मालवीय रोड, जार्ज टाऊन प्रयागराज आजकल नोयडा में रहती हैं।